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झूठे मुकदमों में बर्बाद होता जीवन, कानून लोगों की मदद के लिए ह सताने के लिए नहीं

*झूठे मुकदमों में बर्बाद होता जीवन, कानून लोगों की मदद के लिए हैं, किसी को सताने के लिए नहीं*
स्त्री रक्षा संबंधी कानूनों के तहत जिन पुरुषों और उनके घर वालों को मुकदमे झेलने पड़ते हैं उनकी आफत का तो कहना ही क्या। कितने मामलों में यदि पुरुष विवाहित है तो पत्नियां ही घर छोड़कर चली जाती हैं। बहुत से लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने के बारे में सोचते हैं। यदि किसी बुजुर्ग पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं तो उसकी खैर नहीं रहती।
पिछले दिनों नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल के जवाब के हवाले से एक खबर आई। उससे पता चला कि एक साल में करीब सवा लाख मुकदमे झूठे पाए गए। ये मुकदमे दूसरों को फंसाने के लिए दर्ज कराए गए थे। जिन लोगों पर मुकदमे किए गए थे, उनके खिलाफ आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी यानी वे झूठे थे। कहीं रास्ते के विवाद में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया गया। कहीं विरोधी पर दबाव बनाने के लिए छेड़खानी का मुकदमा तो कहीं दुश्मनी निकालने के लिए मारपीट का मुकदमा दर्ज कराया गया।
इन मुकदमों में फंसने के बाद लोगों का जीवन तबाह हो गया। बिना मतलब की भागदौड़ हुई, ऊपर से पैसा और समय लगा। समाज में लोगों के तरह-तरह के ताने सुनने को मिले। देखा जाए तो इस तरह के मामले नए नहीं हैं। कुछ लोग बदला लेने के लिए कुछ भी करते हैं। आरोप किसी एक आदमी पर नहीं, बल्कि पूरे परिवार पर लगा देते हैं। इनमें बड़ी संख्या में स्त्रियां भी होती हैं। यहां तक कि कई बार बच्चों को भी नहीं बख्शा जाता। खेत की मेड़ जरा-सी इधर-उधर हुई नहीं कि मुकदमे से लेकर खून-खराबे तक बात पहुंच जाती है। हत्याएं तक हो जाती हैं। ऐसे में महाभारत का वह अंश याद आता है जहां दुर्योधन कहता है कि वह पांडवों को सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं देगा। परिणामस्वरूप इतना बड़ा युद्ध और सर्वनाश हुआ। न कौरव बचे, न ही पांडव राज कर पाए।
आखिर कानूनों में इतनी खामियां क्यों हैं कि कोई किसी के भी खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करा देता है। जिसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाता है, उसके पास यदि इतने संसाधन न हों कि वह कानूनी लड़ाई लड़ सके तो उसे सजा भी मिल जाती होगी। बहुत साल पहले फांसी पाए कैदियों की एक रिपोर्ट पढ़ी थी। उसमें अधिकांश ने कहा था कि उन्होंने किसी को नहीं मारा। ग्राम प्रधान या सरपंच ने अपने किसी को बचाने के लिए उनका नाम लिखवा दिया। उन्हें न कानून की कोई जानकारी थी, न वकील को फीस देने के पैसे थे। उन पर अपराध सिद्ध हो गया।
स्त्री रक्षा संबंधी कानूनों के तहत जिन पुरुषों और उनके घर वालों को मुकदमे झेलने पड़ते हैं, उनकी आफत का तो कहना ही क्या। कितने मामलों में यदि पुरुष विवाहित है तो पत्नियां ही घर छोड़कर चली जाती हैं। बहुत से लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने के बारे में सोचते हैं। यदि किसी बुजुर्ग पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं तो उसकी खैर नहीं रहती। कुछ साल पहले इंदौर की एक घटना प्रकाश में आई थी। उसमें जमीन-जायदाद के विवाद में परिवार की बहू ने बुजुर्ग के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था। बुजुर्ग को इससे इतनी पीड़ा पहुंची कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। ऐसा और भी न जाने कितने लोग करते होंगे। बहुत बार विवाह के बाद कुछ बहुएं संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहतीं तो दहेज उत्पीड़न और दुष्कर्म के मामले दर्ज करा देती हैं।
ऐसा नहीं है कि पुलिस को सच्चाई मालूम नहीं होती, लेकिन वह कहती है कि अगर किसी स्त्री ने ऐसे मामले दर्ज कराए हैं तो हमारे हाथ बंधे रहते हैं। सच जानते हुए भी वह कुछ कर नहीं सकती। दहेज प्रताड़ना और दुष्कर्म के मामलों में अक्सर पुरुषों की नौकरी तक चली जाती है। सताई गईं स्त्रियों को हर तरह से कानून और पुलिस की मदद मिलनी चाहिए, लेकिन बदले की भावना से किसी पर कोई भी आरोप लगा देना नितांत गलत है। कानून लोगों की मदद के लिए हैं, किसी को सताने के लिए नहीं। उनका दुरुपयोग रोका जाना चाहिए। अदालतें बार-बार इन बातों को दोहराती रहती हैं।
स्त्रियों को इस बात को जरूर समझना चाहिए कि ऐसा करके वे स्त्रियों का ही नुकसान करती हैं। लोगों का उन पर से भरोसा उठता है और कानूनों की ताकत भी कम होती है। एक बार किसी पर छेड़खानी, दुष्कर्म के आरोप लगा दिए जाएं तो सारा जमाना उसे दोषी मान लेता है, चाहे बाद में आरोप झूठे ही साबित हों। आखिर सफाई भी किस-किस के सामने दी जा सकती है कि भाई हमने ऐसा कुछ नहीं किया। सफाई देने वाले को तो यह भी मान लिया जाता है कि जरूर इसने कुछ किया होगा, तभी सफाई देता फिर रहा है।
यदि एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो हैरत होती है। एक साल में यदि ऐसे सवा लाख मुकदमे दर्ज हुए हैं, जो झूठे थे, जिनकी पुष्टि नहीं हो सकी तो हर साल अगर ऐसे मुकदमे दर्ज होते हों तो कितने लोगों का जीवन बर्बाद होता होगा। उनके परिवारों पर क्या गुजरती होगी? उनके बच्चे क्या महसूस करते होंगे? वे समाज का सामना कैसे करते होंगे? झूठे मुकदमे किसी पर भी हों और किसी भी प्रकरण में हों, बहुत तकलीफदेह हैं। मगर हमारे-आपके कहने से होता ही क्या है, जब तक वे लोग इन बातों पर गौर न करें, जो ऐसा करते हैं।
आजकल तो ऐसे गिरोह भी हैं, जो कानूनों का दुरुपयोग कर लोगों को ब्लैकमेल करते हैं और पैसे वसूलते हैं। पिछले ही दिनों ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। न जाने क्यों सरकारें इस बारे में ध्यान नहीं देती हैं। वे कानून के डंडे से हर एक को हांकने में यकीन करती हैं। कानून लोगों की मदद करें, न कि उनमें भय पैदा करें, क्योंकि भयभीत आदमी को कोई भी अपना शिकार आसानी से बना लेता है। कानून लोगों को भरोसा दें कि किसी भी आपत्तिकाल में सब उसकी मदद ले सकते हैं।

(लेखिका साहित्यकार हैं)

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