*चैनई में यूट्यूबर्श पत्रकारों पर रोक*
भोपाल – चैनई के मित्र बाबू भाई से बात करने पर समाचार मिला कि तमिलनाडु में पत्रकारों पर लगाम लगा दी है।
यूट्यूब पर समाचार बनाने और प्रसारित करने पर रोक लगा दी है इतना ही नहीं यूट्यूबर्श को सरकारी कार्यालयों में प्रवेश निषेध कर दिया है।
जिस तरह मध्यप्रदेश में समाचार पत्रों की बाढ़ आई है उसी तरह की बाढ़ तमिलनाडु में भी है। इसे रोकने के लिए सरकार ने शख्त कदम उठाए हैं, समाचार पत्रों की प्रसार संख्या का नियमित रूप से सत्यापन करना,
आपको मालूम होगा कि वर्ष 2020 एवं 2021 में भोपाल से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की प्रसार संख्या 60 लाख से अधिक थी इसमें वो दैनिक समाचार पत्र सामिल नहीं है जिन्हें राज्य दर पर विज्ञापन मिलते थे।
प्रसार संख्या की आकस्मिक निरीक्षण करने का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकारियों को है अधिकारियों की कमी के कारण यह काम नहीं हो सकता है।
मैंने जनसंपर्क विभाग के आयुक्त राघवेन्द्र सिंह जी को जांच करने के लिए पत्र लिखा था परन्तु?
अब तमिलनाडु में समाचार पत्र के कार्यालय का भी सत्यापन किया जाता है ।
यदि किराए के मकान में आफिस है तो मकान मालिक से शपथ पत्र लेकर जनसंपर्क विभाग में जमा कराना होता है।जिस समाचार पत्र मालिक ने शपथ पत्र नहीं दिया तो उस समाचार पत्र को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया जाता है और समाचार पत्रों के पंजीयक नई दिल्ली को उस पत्र के टाइटल को निरस्त करने के लिए पत्र लिखा जाता है।
प्रिंटिंग प्रेस का भी सत्यापन किया जाता है कि उसकी मुद्रण की छमता कितनी है।
तमिलनाडु सरकार ने आर एन आई बेवसाइट से समाचार पत्रों की सूची निकाल कर उसकी जांच सुरु कर दिया है। कागज विक्रेता से, प्रिंटिंग प्रेस के विजली बिल,सनदी लेखापाल से, जी एस टी विभाग से वेरीफिकेशन किया जा रहा है।
इन सब बातों से मुझे लगता है कि समाचार पत्रों, यूट्यूबर्श, बेवसाइट की असीमित संख्या को देखते हुए कदम उठाए गए हैं।
*आजादी तक समाचार पत्रों का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया गया था।*
आजादी के बाद समाचार पत्रों के मालिकों ने समाचार पत्रों का उपयोग अपने व्यवसायिक लाभ के लिए उपयोग में लाने लगें और आज भी यही स्थिति है।
और भी कई कारण हैं जिससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
*अंत में – एक कहावत है कि नाम दरोगा रख दो*
हम भोपाल में ही देखते हैं कि समाचार पत्रों के मालिक ही नहीं उसमें काम करने वाले पत्रकारों के पास खुद के बंगले है परन्तु शासकीय आवास में रहते हैं, आखिर बड़े बड़े बंगले समाचार पत्र में नोकरी करते कैसे बन गए जांच का विषय है।
समाचार पत्र मालिक से पत्रकार मजीठिया वेतन नहीं मांगता,पी एफ की मांग नहीं कर सकता, मालिक के हिस्से का पीएफ भी उसके वेतन से काटा जाता है और वह चुपचाप रहता है कुछ तो कारण हैं।
प्रश्न तो कई है और उन्हें सभी जानते हैं।
जनसंपर्क विभाग के आयुक्त से निवेदन है कि जो समाचार पत्र मालिक के द्वारा उनके संस्थानों में ग्रामीण अंचल से समाचार भेजते हैं उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन दिलाना, नियुक्ति पत्र दिलाना,पी एफ जमा कराने का काम करना चाहिए और जिन समाचार संस्थानों द्वारा एसा नहीं किया जाता उन्हें शासकीय विज्ञापन सहित अन्य सभी सुविधाएं बंद कर देनी चाहिए।
Check Also
letter असेंबली आफ एमपी जर्नलिस्ट्स के प्रांतीय अध्यक्ष ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव को लिखा पत्र*
*letter असेंबली आफ एमपी जर्नलिस्ट्स के प्रांतीय अध्यक्ष ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव …