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पत्रकारों के प्रकरण में पुलिस एवं न्यायधीश ने कार्यवाही नहीं की तो माननीय न्यायाधीश की शिकायत माननीय प्रधान न्यायाधीश दिल्ली तक लिखित में शिकायत कि और पुलिस महानिदेशक श्री सुधीर सक्सेना जी को पत्र लिखा

*पत्रकारों के प्रकरण पर पुलिस और न्यायाधीश ने कार्यवाही नहीं की तो माननीय न्यायाधीशों की लिखित शिकायत जिला दंडाधिकारी से लेकर प्रधान न्यायाधीश महोदय को की* *पुलिस की मर्जी है कि वह एफआईआर दर्ज करे या न करे, बड़े राजनेताओं की बंदना में भी पीछे नहीं* भोपाल – आम नागरिक को पुलिस पर बहुत विश्वास था लेकिन उसकी कार्यप्रणाली ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। *टी टी नगर थाने के एक टी आई कामले ने कहा था कि मैं ऊपर अधिकारियों से बात करने के बाद एफआईआर दर्ज करुंगा* मैं बात पत्रकारों की करुंगा। पत्रकार देव ऋषि नारद जी की भूमिका निभाता है। वर्तमान युग में उसे कथित रूप से चौथा स्तंभ कहा जाता है परन्तु संबिधान में कहीं कोई जिक्र नहीं है। मेरी समझ से पत्रकार एक सेतु का काम करता है।आम नागरिक की बात, दुःख,दर्द,सुख सुविधा, जैसी बातें अपनी कलम के माध्यम से सरकार और सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाता है इसी तरह सरकार और सरकारी तंत्र आम नागरिक तक भी पहुंचाने का काम करता है और इसी उहा पोह में सत्यता सामने लाता है जिसके कारण उसके मित्र कम और दुश्मन अधिक हो जाते हैं और ये दुश्मन अपने धन बल, राजनीतिक पहुंच के चलते पत्रकार के खिलाफ मामला पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देता है। जैसे ही पुलिस एफआईआर दर्ज कर लेती है तो पत्रकार के साथ उसका परिवार संकट में पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में पत्रकार पर संकट का पहाड़ खड़ा हो जाता है बह आर्थिक रूप से, सामाजिक रूप से, मानसिक रूप से प्रताड़ित होता है। राज्य सरकार ने पत्रकार को इन परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए गृह मंत्रालय ने समय-समय पर आदेश जारी किए इतना ही नहीं सुप्रीमकोर्ट के आदेश है कि सबसे पहले धारा 154 में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाय। परंतु पुलिस आवेदन पत्र के आधार पर अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर लेती है। गृह मंत्रालय के आदेश है कि 154 में प्रकरण दर्ज कर पत्रकार के मामले की जांच पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस महानिरीक्षक के द्वारा उपलब्ध साक्ष्य की समीक्षा करते हैं उससे यह बात भी देखी जाती है कि कहीं दुर्भावनावश या तकनीकी किस्म के प्रकरण स्थापित कर परेशान तो नहीं किया जा रहा है यदि कोई प्रकरण दुर्भावनावश विवेचना करना पाया जाता है तो तत्काल प्रभाव से खात्मा करने के आदेश दिए जायें और संबंधित पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय जांच संस्थित की जाय। इस आदेश में स्पष्ट लिखा है कि प्रेस/मीडिया करसपोंडेंट हो जिसकी पुष्टि जिला जनसंपर्क अधिकारी करता है। परंतु दुर्भाग्य है कि इस भाषा को पुलिस और जनसंपर्क विभाग के अधिकारी समझ नहीं पा रहे हैं इस प्रकार की समीक्षा की सुविधा वैसे पत्रकार/ मीडिया को प्राप्त होगी जो कि प्रिंट/ विजुअल मीडिया संबंधी किसी पंजीबद्ध संस्था के अभिस्वीकृति प्राप्त प्रतिनिधि हो।मेरा मानना है कि पंजीयक, भारत के समाचार पत्रों के द्वारा जिन समाचार पत्रों में काम करने वाले पत्रकारों को यह सुविधा है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक समिति का गठन किया है उसे दो माह का समय दिया गया है कि वह पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए मसौदा तैयार कर सरकार को भेजें।
मेरे पास वर्तमान में जो प्रकरण महिलाओं एवं पुरुष पत्रकारों के है। एक महिला एवं पुरुष पत्रकार पर लिखित आवेदन पर प्रकरण दर्ज कर लिया वह भी विभिन्न धाराओं में, इसी तरह एक महिला ने उसे प्रताड़ित करने की लिखित आवेदन पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की तब एम पी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने वकील के माध्यम से न्यायालय की शरण में जाना पड़ा जब माननीय न्यायाधीश महोदया के आदेश से लगा कि मामला लटका दिया गया है तब जिला जज, हाईकोर्ट एवं सुप्रीमकोर्ट में शिकायत पत्र के माध्यम से की तो दूसरे दिन भोपाल की महिला थानाप्रभारी के द्वारा वयान लिए गए परन्तु न वयान लेने की सूचना दी और न ही वयान की प्रति। एक प्रकरण और है 2018 नवंबर का पत्रकार ने डाक से अपना आवेदन भेजा उसमें स्पष्ट लिखा है कि भोपाल न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण से हटने को कहा न हटने पर जान से हाथ धोना पड़ेगा। पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। प्रकरण वकील के माध्यम से न्यायालय में प्रस्तुत किया 156 – 3 निरस्त कर दिया पुनः 200 में दायर किया उसे समाप्त कर दिया इसकी जानकारी पत्र के माध्यम से जिला जज, हाईकोर्ट एवं सुप्रीमकोर्ट में शिकायत दर्ज कराई है देखते हैं क्या होता है ।इससे स्पष्ट होता है कि पुलिस कहीं न कहीं दबाव में आकर काम करती है। आज से दो दिन पहले सभी पत्रकारों के प्रकरण की सी आई डी जांच के लिए पुलिस महानिदेशक श्री सुधीर सक्सेना जी को पत्र लिखकर दिया है।

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