*🌹शीतला माता पर सुंदर विचार की कहानी🌹*
*एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है कौन मुझे मानता है यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है ना मेरी पुजा है*
*माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका*
*वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये जिससे शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी*
*शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई शरीर तप रहा है जल रहा है*
*कोई मेरी मदद करो लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी*
*वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है*
*इसके पुरे शरीर में तपन है इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये है यह तपन सहन नही कर पा रही है*
*तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जा मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ*
*कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है*
*तू दही-राबड़ी खा लें जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली*
*तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु*
*और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं*
*यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ*
*मैं शीतला देवी हूँ मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है*
*कौन मेरी पुजा करता है इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई*
*माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई और तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा- है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ*
*मेरे घर में ना तो चौकी है ना बैठने का आसन तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया*
*और उस कुम्हारन से कहा हे बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले*
*कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इक्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो*
*और जिस प्रकार आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना*
*और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना*
*उसकी गोद हमेशा भरी रखना साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को पकड़े धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़कर नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये*
*तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा*
*तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी शील कि डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है*
*शीतला सप्तमी वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है इस कथा को पड़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है