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मनुष्य को*जीवन में कोई एक नियम बनाना चाहिए*,

*मनुष्य को*जीवन में कोई एक नियम बनाना चाहिए*,
‌ नियम की बात कहें तो कोई माननें को तैयार नहीं होगा , यह कलयुग है इस युग में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक को हर समय अर्थ प्राप्त करने की चाह रहती है इसी बात को ध्यान में रखते हुए भागवताचार्य जी ने एक कहानी सुनाई लगभग सभी श्रोताओं को पसंद आई होगी।*कहानी का सार*। एक महात्मा जी एक गांव में गए थे चलते हुए उन्हें एक झोपड़ी मिली झोपड़ी के सामने खड़े होकर आवाज लगाई तब उस झोपडी में से एक कुम्हार बाहर निकल कर आया।संत श्री ने उस व्यक्ति से कहा कुछ दे दो तो उस कुम्हार ने कहा कि महाराज मैं गरीब हूं और मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है तब संत श्री ने कहा कि तुम मुझे बचन तो दे सकते हो परन्तु बह कुम्हार किसी भी बचन पर तैयार नहीं हो रहा था, किसी तरह उस कुम्हार ने एक नियम लेना स्वीकार किया और संत श्री से कहा कि अब मैं पड़ोसी को देखकर ही भोजन करुंगा। बह कुम्हार नियम का पालन करने लगा एक दिन पड़ोसी नहीं दिखाई दिया और कुम्हार को पड़ोसी नहीं दिखाई दिया भूख से व्याकुल होकर उसने पड़ोसी को आवाज लगाई तब उसे अंदर से जबाब मिला कि वह मिट्टी लेने खेत पर गए हैं। कुम्हार भागा भागा उस व्यक्ति को देखने खेत में गया वहां उसे बह पड़ोसी दिख गया तो कुम्हार खुशी में जोर जोर से कहने लगा दिख गया दिख गया,उस कुम्हार की आवाज से जो व्यक्ति मिट्टी लेने गया था बह परेशान हो गया क्योंकि उसे एक घड़ा मिला था जिसमें हीरे-जवाहरात आदि मिलें थे उस व्यक्ति ने कुम्हार को अपने पास बुलाया और कहा कि बताना नहीं आधा आधा बांट लेते हैं कुम्हार ने भी सोचा कि जो मिल रहा है ले लिया जाए। उस सम्पत्ति से उन दोनों के दिन फिर गए पक्के मकान, महंगें वस्त्र और ठाट-बाट हो गये। थोड़े दिन बाद संत श्री महाराज का पुनः उस कुम्हार के घर आए घर बदला देखकर उन्होंने आबाज लगाई कुम्हार बाहर निकल कर आया और महाराज जी को आदर सहित अंदर ले गया और सारा वृत्तांत सुनाया। *एक नियम जीवन में खुशियां लाता है इसलिए एक नियम बनाना चाहिए* आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में नियम बनाना आसान नहीं है अतः लगभग सभी के पास मोबाइल होता है बस मोबाइल में जिसकी आप आराधना करते हैं या जिसे आप चाहते है उसका फोटो लगा लें और उसे एक बार नियम से देख लें, *मान और सम्मान सबसे बड़ी दौलत है ।गरीबी और अमीरी न तो रिश्ते में देखी जाती और न ही मित्रता में * जीवन मे दो तरह के दोस्त ज़रूर बनाएं ..*
एक ‘ *कृष्ण* ‘ के जैसे,
जो आपके लिए लड़ेंगे नहीं,
पर ये  ‘सुनिश्चित ‘ करेंगे की
जीत आप की ही हो ।
और ..
दुसरा ‘ *कर्ण* ‘ की तरह
जो आप के लिए तब भी लड़े..
जब आपकी हार सामने दिख रही हो *आज की कथा सुदामा चरित्र*। भजन, अरे द्वार पालों कह दो कन्हैया से कि *एक बाल मित्र* आया है नाम सुदामा बताना। जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने सुना कि उनका बाल मित्र सुदामा आया है तो भगवान श्रीकृष्ण नंगें पैर दरवाजे तरफ भागे रुक्मणी जी देखती रह गई कि आखिर कौन है यह सुदामा जिसको लेने भगवान श्रीकृष्ण नंगें पैर दौड़ लगाए हैं। मित्रता में धन वैभव अमीरी गरीबी नहीं होती है। मित्रता तो मित्रता होती है वह निशवार्थ भाव से होती है।
राधावल्लभ शारदा, भोपाल 9425609484

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