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हाईकोर्ट में भड़ास की हुई जीत, एचटी ग्रुप के खिलाफ हम खबर छाप सकेंगे, लेकिन वर्जन लेने के बाद

हाईकोर्ट में भड़ास की हुई जीत, एचटी ग्रुप के खिलाफ हम खबर छाप सकेंगे, लेकिन वर्जन लेने के बाद!
*भोपाल से राधावल्लभ शारदा प्रधान संपादक महादण्ड.काम के विशेष टिप्पणी — पुराने जमाने में हम पत्रकारों को पहला पाठ पढ़ाया जाता था कि विश्वास अर्जित करें और इसी आधार पर समाचार मिलते थे उन समाचारों की पुष्टि करने की आवश्यकता नहीं होती थी। समाचार दस्तावेज के आधार पर या फिर अधिकारियों द्वारा दिये गये विचारों पर प्रकाशित किए जाते थे।उस जमाने में वर्जन लेने की आवश्यकता नहीं होती थी क्योंकि पत्रकारिता विश्वास पर आधारित थी तब समाचार प्रकाशित करने के पीछे लोभ लालच नहीं होता था। अब ऐसा लगता है कि वर्जन लेने के पीछे उद्देश्य अर्थ से जुड़ गया है या समाचार देने वाले का कोई उद्देश्य है।*
यशवंत सिंह-
हाईकोर्ट में हम लोग जीत गए. हिंदुस्तान टाइम्स समूह के खिलाफ हमने एक केस किया था, लोवर कोर्ट के आदेश को चैलेंज करते हुए. लोवर कोर्ट ने कह दिया था कि हम हिंदुस्तान टाइम्स के खिलाफ कुछ छाप ही नहीं सकते. तो हाईकोर्ट ने आज कह दिया कि आप छाप सकते हैं, लेकिन पहले वर्जन लीजिए.
इसके लिए एक मेल आईडी मुहैया कराया है एचटी वालों ने. अगर 48 घंटे तक वे रिस्पांड नहीं करते हैं तो हम फिर छापने के लिए फ्री हैं. एचटी ग्रुप ने करोड़ों की मानहानि का केस किया था जिसके तहत लोवर कोर्ट ने एक रुपये का जुर्माना किया था. आज हमारे वकीलों ने एक रुपये जुर्माने की राशि को हाईकोर्ट में जमा कर दिया.
ये मुकदमा लोवर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक में कुल चौदह साल तक चला. हाईकोर्ट के आज के आदेश का फाइनल आर्डर आने पर इस पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. फिलहाल तो ये हम लोगों की बड़ी जीत है. एक रुपया जुर्माना देने का ग़म तो है, क्योंकि हम लोगों ने हिंदुस्तान समूह में भयंकर छंटनी की खबर प्रकाशित की थी जिससे प्रबंधन नाराज था. जेनुइन खबर छापने को भी मानहानि माना जाना गलत बात है.
इसी के बाद मानहानि का केस एचटी मीडिया ने किया था. लेकिन खुशी इस बात की है कि लोवर कोर्ट के अंधे आदेश को हाईकोर्ट ने ठीक करते हुए हम लोगों को एचटी ग्रुप के खिलाफ खबर छापने का अधिकार दे दिया, वर्जन लेने की शर्त के साथ. एक मेल आईडी एचटी ग्रुप का दे दिया गया है जिस पर हमें वर्जन के लिए मेल करना है.
इसी तरह से अन्य मीडिया समूहों से अपील है कि वे भी अपना अपना मेल आईडी दे दें ताकि उनका पक्ष लेने में सहूलियत हो सके.
हाईकोर्ट में इस केस को हमारे वकीलों मयूरी रघुवंशी और व्योम रघुवंशी व इनकी टीम ने मजबूती से रखा और जीत हासिल की. इन वकीलों ने भड़ास से कोई फीस नहीं ली क्योंकि ये मीडिया की आजादी का मामला था. इसलिए इन्होंने बिना एक पैसे लिए ये केस लड़ा. अभिव्यक्ति की आजादी को सुरक्षित रखने की मुहिम में भरपूर साथ देने के लिए हम एडवोकेट मयूरी रघुवंशी, एडवोकेट व्योम रघुवंशी और उनकी पूरी टीम के आभारी हैं.
ज्ञात हो कि व्योम और मयूरी उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस अधिकारी विजय शंकर सिंह के बेटा-बहू हैं.

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