हाईकोर्ट : रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश देते समय न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रारंभिक जांच का आदेश देने का विवेकाधिकार
न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने आगे कहा कि जब सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आवेदन किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करता है, तो संबंधित मजिस्ट्रेट को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देना चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दायर एक आवेदन पर विचार करते समय उन मामलों में एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने से पहले प्रारंभिक जांच का निर्देश देने का विवेकाधिकार है, जहां उसे लगता है कि यह संज्ञेय नहीं है, लेकिन अपराध बनता है। हालांकि, अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच का दायरा प्राप्त जानकारी की सत्यता या अन्यथा की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि केवल यह सुनिश्चित करना है कि क्या जानकारी किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है।
न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने आगे कहा कि जब सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आवेदन किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करता है, तो संबंधित मजिस्ट्रेट को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देना चाहिए।
कोर्ट ने ये टिप्पणियां याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एक आवेदन में लगाए गए आरोपों के संबंध में सब डिविजनल मजिस्ट्रेट द्वारा प्रारंभिक जांच के निर्देश देने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को दी गई चुनौती को खारिज करते हुए कीं।
यह है मामला
मामला यह था कि सत्येन्द्र पाल की हत्या के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक के बेटे को गिरफ्तार कर लिया और जब वे उसे रिमांड पर लेने के बाद पुलिस वैन में ले जा रहे थे, तो आवेदक वकील होने के नाते पुलिस के साथ गए और दूरी बनाकर वे सर्च ऑपरेशन की रिकॉर्डिंग और वीडियोग्राफी कर रहे थे।
उनका मामला यह था कि जब पुलिस अधिकारियों को उस स्थान पर पहुंचने पर जहां कथित वसूली की गई थी, पता चला कि पूरी घटना वीडियो कैमरे में रिकॉर्ड की जा रही है, तो उन्होंने वीडियोग्राफी बंद कर दी। फिर आवेदक का वीडियो कैमरा छीन लिया और पुलिस टीम ने याची और उसके साथ आए अन्य व्यक्तियों को जबरन बंधक बनाकर गाड़ी में डाल लिया और कुछ दूरी पर ले जाकर नहर में फेंकने का प्रयास किया।