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*In the world विश्व के पहले आश्चर्य कि कथा रोचक है इस तरह का आश्चर्य न पहले हुआ न आगे सुनने को मिलेगा, इस आश्चर्य के जनक संविधान के तीनों स्तंभ के कथित चौथा स्तंभ भी पीछे नहीं है* जज जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते… ​​CJI चंद्रचूड़ ने किन मामलों को लेकर ऐसा कहा?

*In the world विश्व के पहले आश्चर्य कि कथा रोचक है इस तरह का आश्चर्य न पहले हुआ न आगे सुनने को मिलेगा, इस आश्चर्य के जनक संविधान के तीनों स्तंभ के कथित चौथा स्तंभ भी पीछे नहीं है*
जज जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते… ​​CJI चंद्रचूड़ ने किन मामलों को लेकर ऐसा कहा?

*भोपाल से संपादित राधावल्लभ शारदा द्वारा विशेष टिप्पणी* – *न्यायालय में न्यायाधीश जब दो पेज का आवेदन नहीं पढ़ पाते और जैसा वकील बोलता है उसी अनुसार अपना निर्णय लेते है, जहां तक मेरा मानना है हो सकता है गलत हो लेकिन लिखने में चूक नहीं होना चाहिए*,*एक उदाहरण एक भ्रष्टाचार का मामला सुप्रीमकोर्ट में लगाया तो उसे क्रिमिनल केस दर्ज किया गया।*
*क्या केश दर्ज करने के पहले न्यायिक प्रणाली के अनुसार उसका परिक्षण किया गया होगा उसके बाद ही क्रिमिनल केस दर्ज किया गया होगा*,
*केश समाप्त कर दिया मामला पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के द्वारा पद का दुरुपयोग, मुख्यमंत्री पद की सपथ का उल्लंघन, सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाना*,
*विश्व का पहला प्रकरण अभी तक आप लोगों ने सुना नहीं होगा*।
*विश्व का पहला आश्चर्य* – *गुनाह एक व्यक्ति की संस्था का जिसने अपने कालेज में विद्यार्थियों को नियम विरुद्ध एडमिशन दिया*।
*मध्यप्रदेश सरकार के तकनीकी शिक्षा विभाग का नियम है कि पहली अवैध एडमिशन पर आर्थिक दंड*, *दूसरी अनायमितता पर आर्थिक दंड और तीसरी* *अनियमितता पर कालेज की मान्यता निरस्त कर दी जाती है परन्तु अब मैं उस विश्व के पहले आश्चर्य कि के बारे में जानकारी दे रहा हूं जो आपने नहीं सुना होगा*,
*इस प्रकरण में अंतिम समय एक संस्था का उल्लेख होता है और जो आर्थिक दंड एक संस्था पर लगना था उसे दो में बांट दिया*।
*जांच एजेंसी के अधिकारियों ने भी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया*।
*जांच एजेंसी पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है आखिर जिस तरह न्यायपालिका ने आंख पर पट्टी बांध रखी है उसी तरह जांच एजेंसी के अधिकारी वर्ग ने लक्ष्मी के आगे सिर झुका दिया मतलब साफ है कि भारी भरकम लाखों नहीं करोड़ों रुपए रिश्वत के रूप में लिये होंगे*।
*मेरा सीधा आरोप है कि कोई भी ऐसा वर्ग नहीं है* *जहां भ्रष्टाचार की नदी नहीं बहती है और उस भ्रष्टाचार की नदी में डुबकी लगाने में देश के तीनों स्तंभ पीछे हो*।
*कथित चौथा स्तंभ भी पीछे नहीं है*।
*यदि भ्रष्टाचार की नदी इसी तरह बहेगी तो देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अकेले कुछ नहीं कर सकते , अतः भ्रष्टाचार को फलने फूलने दें*।
भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि ट्रायल जज महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देने से बचते हैं। खासकर तब, जब मामले में संदेह हो। उन्होंने कहा कि हर केस को ‘मजबूत सामान्य ज्ञान’ से देखने की जरूरत है। मुख्य न्यायाधीश ने ज़ोर देकर कहा कि हर मामले की बारीकी को समझना जरूरी है

नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि निचली अदालतों में जमानत मिलने में दिक्कत आ रही है, खासकर गंभीर अपराधों के मामलों में। उन्होंने कहा कि कई बार जज शक होने पर भी रिस्क नहीं लेना चाहते और जमानत देने से बचते हैं। CJI चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि हर केस अलग होता है और जजों को अपनी समझ और विवेक का इस्तेमाल करके फैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों को निचली अदालतों से जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें वहां जमानत नहीं मिल रही है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें हमेशा उच्च न्यायालयों का रुख करना पड़ता है।’ उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों को उच्च न्यायालयों से जमानत मिलनी चाहिए, जरूरी नहीं कि उन्हें जमानत मिल जाए और इस कारण उन्हें उच्चतम न्यायालय का रुख करना पड़ता है। यह देरी उन लोगों की समस्या को और बढ़ा देती है जो मनमाने तरीके से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं।’

CJI चंद्रचूड़ ‘तुलनात्मक समानता और भेदभाव-रोधी बर्कले केंद्र के 11वें वार्षिक सम्मेलन’ के दौरान अपने भाषण के अंत में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। यह सवाल, मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियों के बारे में पूछा गया था। प्रश्न पूछने वाले शख्स ने कहा, ‘हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां पहले कृत्य किया जाता है और फिर बाद में माफी मांगी जाती है। यह बात विशेष रूप से उन लोक प्राधिकारियों के लिए सच हो गई है जो राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और यहां तक कि विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों समेत नेताओं को हिरासत में ले रहे हैं।’ उनके अनुसार, ये सभी कृत्य इस पूर्ण विश्वास के साथ किए जाते हैं कि न्याय बहुत धीमी गति से मिलता है। CJI चंद्रचूड़ ने इसके जवाब में कहा कि उच्चतम न्यायालय लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि इसका एक कारण देश में संस्थाओं के प्रति अविश्वास भी है।
‘प्रत्येक मामले की बारीकियों को देखना होगा’
उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्यवश, आज समस्या यह है कि हम अधीनस्थ अदालतों के जजों की ओर से दी गई किसी भी राहत को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। इसका मतलब यह है कि निचली अदालत के जज महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।’ चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायाधीशों को प्रत्येक मामले की बारीकियों और सूक्ष्मताओं को देखना होगा। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले उच्चतम न्यायालय में आने ही नहीं चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हम जमानत को प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं ताकि पूरे देश में यह संदेश जाए कि निर्णय लेने की प्रक्रिया के सबसे प्रारंभिक स्तर पर मौजूद लोगों (न्यायिक अधिकारियों) को यह विचार किये बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिए कि उन्हें कोई जोखिम नहीं है।’

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