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1968 में हुए समझौते के तहत मथुरा शाही ईदगाह मामले की सुनवाई नहीं हो सकती हाईकोर्ट

1968 में हुए समझौते के तहत मथुरा शाही ईदगाह मामले की सुनवाई नहीं हो सकती हाईकोर्ट

लखनऊ से प्रेमशंकर अवस्थी के साथ भोपाल से राधावल्लभ शारदा द्वारा संपादित रपट
प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट में शाही ईदगाह प्रबंध समिति की वकील ने गुरुवार को दलील दी कि मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बगल में बनी मस्जिद को ‘हटाने’ का आग्रह करने वाले वाद पर सुनवाई नहीं हो सकती है, क्योंकि परिसीमा कानून के तहत यह वाद निर्धारित समय सीमा में दायर नहीं किया गया है। परिसीमा अधिनियम कानूनी उपाय खोजने के लिए एक विशिष्ट समय अवधि निर्धारित करता है।
मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश हुईं तसलीमा अजीज अहमदी ने दलील दी कि दोनों पक्षों के बीच 12 अक्टूबर 1968 को एक समझौता हुआ था, जिसकी पुष्टि 1974 में एक दीवानी वाद में कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि एक समझौते को चुनौती देने की समय सीमा तीन वर्ष है, लेकिन वाद 2020 में दायर किया गया, लिहाजा मौजूदा वाद पर परिसीमा कानून के तहत सुनवाई नहीं हो सकती है।
हाई कोर्ट को बताया गया कि यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। अहमदी ने कहा कि वाद में की गई प्रार्थना दर्शाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई हाई कोर्ट एकसाथ कर रहा है
उन्होंने कहा कि इस प्रकार से वक्फ की संपत्ति पर एक सवाल-विवाद खड़ा किया गया है, लिहाजा इस पर वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे और ऐसे में वक्फ न्यायाधिकरण को मामले की सुनवाई का अधिकार है, न कि दीवानी अदालत को। दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मामले की सुनवाई की अगली तिथि 13 मार्च निर्धारित की। पिछले वर्ष इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े सभी 15 मामलों को सुनवाई के लिए अपने पास मंगा लिया था।

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