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MPPSC में अपात्र सदस्य की नियुक्ति मोहन कैबिनेट ने दी मंजूरी, गलती नहीं प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी ताक़त दिखाई

MPPSC में अपात्र सदस्य की नियुक्ति मोहन कैबिनेट ने दी मंजूरी, गलती नहीं प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी ताक़त दिखाई ,
भोपाल से राधावल्लभ शारदा द्वारा संपादित रपट टिप्पणी मोहन यादव की छवि खराब करने का तरीका । सरकार में की जा रही नियुक्तियों के मामलों में अफसर संबंधित व्यक्ति के बारे में बेसिक यानी प्रारंभिक स्तर की छानबीन भी नहीं कर रहे हैं और क्लर्क की ओर से तैयार फाइल यानी नोटशीट को सीएमओ को फॉरवर्ड कर रहे हैं। अफसरों के फीडबैक पर भरोसा कर सीएमओ और कैबिनेट नियुक्ति या इससे संबंधित आदेश को मंजूरी दे देती है। अफसरों की इस लापरवाही से सरकार की किरकिरी हो रही है। ताजा घटना MPPSC की है, जानिए क्या है पूरा मामला…
मप्र लोक सेवा आयोग ( MPPSC ) ( एमपीपीएससी ) जैसी संवैधानिक संस्था, जिसमें सदस्यों की नियुक्ति तक के प्रावधान तय हैं, इसी में डॉ. मोहन यादव की सरकार भारी चूक कर गई। ऐसे अपात्र सदस्य की फाइल जीएडी (सामान्य प्रशासन विभाग) से लेकर सीएस, सीएम कार्यालय, कैबिनेट तक से मंजूर होती गई, जो पीएससी सदस्यों के लिए तय उम्र जैसे एक सामान्य मानक पर ही खरे नहीं थे। जब बात कैबिनेट से मंजूरी के बाद नियुक्ति पत्र जारी करने की आई तो जीएडी को गलती पता चली और नियुक्ति रोकी गई।
जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डेंटल विभाग के एचओडी और असिस्टेंट प्रोफेसर एचएस मरकाम के साथ रीवा के अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक नरेंद्र सिंह कोष्ठी को पीएससी में रिक्त दो सदस्य पद के लिए नियुक्ति देने का फैसला 19 फरवरी को मोहन सरकार की कैबिनेट ने किया। इसकी औपचारिक घोषणा हो गई, लेकिन बाद में 26 फरवरी को जीएडी ने केवल कोष्ठी की नियुक्ति के आदेश ही जारी किया। मरकाम का आदेश जारी नहीं किया गया। वजह यह थी कि राज्य लोक सेवा आयोग के लिए संविधान की धारा 316 के तहत क्राइटेरिया है कि सदस्य अधिकतम छह साल या 62 साल की उम्र तक रह सकता है। मरकाम तो अप्रैल 2023 में ही 62 साल पूरो कर चुके थे। उनका जन्मदिन 7 अप्रैल 1961 है यानी कैबिनेट से नियुक्ति मंजूरी के समय ही वह इस उम्र सीमा को पार कर चुके थे।
यह गफलत नहीं हुई सडयंत्र था । दरअसल, यूपीएससी ( UPSC ) यानी संघ लोक सेवा आयोग के लिए अधिकतम उम्र सीमा 65 साल है, वहीं राज्य सेवा आयोग के लिए यह सीमा 62 साल है। इसी संविधान के प्रावधान को बड़े-बडे सीनियर आईएएस अधिकारी भूल नहीं गए वरन मुख्यमंत्री मोहन यादव की छवि खराब करने की योजना के तहत नियुक्ति की फाइल चला दी गई।
इतने स्तर से गुजरी फाइल, किसी ने उम्र देखना ही जरूरी नहीं समझा
पीएससी ( PSC ) जैसे पदों पर नियुक्ति के लिए कई स्तरों से फाइल चलती है। हालांकि, मानवीय भूल संभव है, लेकिन इस सिस्टम में हर अधिकारी ने मानवीय भूल की यह समझ से परे है या फिर जो फाइल बाबू ने बनाकर दी, उसे ही सीनियर आईएएस ( IAS ) अधिकारी, सीएस (मुख्य सचिव) स्तर से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय भी आगे बढ़ा देता है, यह समझ के परे है। इसके बाद कैबिनेट में भी किसी ने नहीं देखा। मरकाम की फाइल किन -किन अफसरों की नजरों से निकली.
सबसे पहले आवेदन आने पर अधिकारियों की स्क्रूटनी कमेटी नाम छांटती है और संविधान के प्रावधानों के तहत देखती है कि संबंधित भर्ती योग्य है या नहीं, क्योंकि पीएससी में आधे सदस्य वह हो सकते हैं जो कम से कम दस साल से शासकीय सेवा में हों।
कमेटी के नाम छंटनी के बाद मरकाम का पुलिस सत्यापन भी हुआ, कॉलेज के सभी रिकार्ड भी देखे गए कि क्लीन रिकार्ड है या नहीं, बाकी डिटेल भी परखी गई।
छंटनी के बाद फाइल जीएडी में नियुक्ति के लिए चली। इसमें जीएडी के अवर सचिव, उप सचिव, सचिव और प्रमुख सचिव तक फाइल गई और सभी ने इसे देखने के बाद आगे मंजूरी के लिए आगे बढ़ाया।
फाइल मुख्य सचिव यानी सीएस के पास मंजूरी के लिए आई। सीएस के यहां से हरी झंडी के बाद सीएम कार्यालय में गई। सीएम कार्यालय ने फाइल को परखा, सीएम के संज्ञान में लाया गया और फिर मंजूरी के बाद इसे कैबिनेट एजेंडा में रखने के लिए भेज दिया गया।
18 फरवरी को सभी मंत्रियों को कैबिनेट का एजेंडा भेजा गया। इसमें मरकाम और कोष्ठी की नियुक्ति का मामला भी था, लेकिन किसी भी मंत्री ने इसे ठीक से पढ़ा तक नहीं।
9 फरवरी को कैबिनेट हुई, इसमें मरकाम की नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई।
कैबिनेट से मंजूरी के बाद नियुक्ति पत्र जारी करने के पहले उम्र का मामला सामने आया। इसमें पता चला कि उम्र सीमा 62 साल है, लेकिन मरकाम की उम्र इससे अधिक है। इसके बाद आनन-फानन में अफसरों ने यह बात उच्च स्तर पर बताई, जिसके बाद मामले के दबाते हुए दूसरे सदस्य कोष्ठी की नियुक्ति का ही आदेश 26 फरवरी को जीएडी ने जारी किया और मरकाम का आदेश रोक दिया गया।
यह पहला मामला नहीं, रेरा चेयरमैन के मामले में भी चूक कर चुकी सरकार
मानवीय भूल केवल आयोग के मामले में ही नहीं हुई है। मुख्य सचिव कार्यालय में बैठे अधिकारियों ने इसके पहले आयोग, मंडल, बोर्ड के चेयरमैन (राजनीतिक नियुक्ति) हटाने के आदेश में भी सीएम मोहन यादव सरकार की किरकिरी कराई थी। रेरा चेयरमैन एपी श्रीवास्तव को भी हटाने के आदेश हुए, जबकि रेरा चेयरमैन को हटाया ही नहीं जा सकता है। उनके हटने के अलग विधिक प्रावधान है। इसी तरह विविध आयोगों में भी अध्यक्षों को नहीं हटाया जा सकता, इस्तीफा ही लिया जा सकता है, लेकिन इसमें भी एक लाइन के आदेश जारी हो गए।
क्या अधिकारी फाइलों को बिना देखे सीएम के पास भेज रहे ऐसा नहीं है यह सब सेटिंग का चांदी का चम्मच है।
बार-बार इस तरह के मामले सामने आने के बाद सीएम मोहन सरकार की छवि प्रभावित हो रही है। नियुक्ति, हटाने संबंधी फाइल नियमानुसार है या नहीं यह देखना निचले स्तर पर अधिकारियों का काम है, जिसमें प्रमुख भूमिका संबंधित विभाग, खासतौर से मुख्य सचिव कार्यालय की होती है। लेकिन एक के बाद एक इस तरह के मामले सामने आने से ऐसा लग रहा है कि सरकार में कोई गंभीरता से फाइल नहीं देख रहा है और नीचे से चली फाइल को वैसे के वैसे ही बिना गुण-दोष के सीएम व उनकी कैबिनेट के पास रखा जा रहा है। जिसे फिर बाद में वापस लने से छवि प्रभावित हो रही है
पीएससी में एक चेयरमैन के साथ चार सदस्यों के पद होते हैं। इसमें अभी चेयरमैन पर डॉ. राजेश लाल मेहरा हैं तो सदस्य के तौर पर चंद्रशेखर रायकवार और डॉ. कृष्णकांत शर्मा हैं। डॉ. रमन सिंह सिकरवार के रिटायर होने से एक पद मई 2022 से खाली है तो अगस्त 2023 में देवेंद्र सिंह मरकाम के रिटायर होने से दूसरा पद छह माह से खाली है। इन दो पदों के विरुद्ध ही मरकाम व कोष्ठी की नियुक्ति होना ,थी लेकिन अब एक पद फिर खाली रहेगा और नए सिरे से पूरी प्रक्रिया होगी। इतनी बड़ी ग़लती कर्णधारों पर एक्सन नहीं।

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