Supreme Court: ने उप मुख्यत्री की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है
नई दिल्ली | से वेदप्रकाश रस्तोगी के साथ भोपाल से वैंकटेश शारदा द्वारा संपादित रपट। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में उपमुख्यमंत्री नियुक्ति करने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डिप्टी सीएम का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है।
शीर्ष अदालत ने सोमवार को कहा कि उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति, कई राज्यों में पार्टी या सत्ता में पार्टियों के गठबंधन में वरिष्ठ नेताओं को थोड़ा अधिक महत्व देने की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। यह असंवैधानिक नहीं है
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि उपमुख्यमंत्री संविधान के तहत सिर्फ सीएम की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद के सदस्य हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं। बेंच ने कहा कि कि उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करती है। इस आधार पर याचिका को खारिज किया जाता है।
जनहित याचिका (PIL) में कहा गया था कि संविधान में कोई प्रविधान नहीं होने के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों ने उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की है। संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रविधान है
देशभर के 14 राज्यों में इस वक्त 26 डिप्टी सीएम है। वकील मोहनलाल शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि डिप्टी सीएम की नियुक्ति का राज्य के नागरिकों से कोई लेनादेना नहीं है। न ही कथित उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति होने पर राज्य की जनता का कोई अतिरिक्त कल्याण होता है।
याचिका में क्या कहा गया?
याचिका में यह भी कहा गया था कि डिप्टी सीएम की नियुक्ति से जनता में बड़े पैमाने पर भ्रम पैदा होता है। साथ पॉलिटिकल पार्टियों द्वारा काल्पनिक पोर्टफोलियो बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं, क्योंकि उपमुख्यमंत्रियों के बारे में कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं। जबकि उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इसको सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया।
