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सड़ता हुआ भोपाल, सजता हुआ इंदौर

*सड़ता हुआ भोपाल, सजता हुआ इंदौर….*
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#विजयमनोहरतिवारी

*इंदौर साफ-सफाई में देश का नंबर वन शहर बना ही हुआ है लेकिन भोपाल के क्या हाल हैं? अगर एक पंक्ति में दोनों शहरों का हाल बताना हो तो मैं कहूँगा-इंदौर सजता हुआ शहर है और भोपाल सड़ता हुआ शहर! रोचक यह है कि एक ही दल द्वारा लंबे समय से शासित दो शहर हैं।*

मेरे जीवन के पिछले तीस साल इन दोनों शहरों में ही बीते हैं। वे एक पिता की दो संतानों की तरह एक राज्य के दो शहर नहीं हैं, जिनके स्वभाव और प्रकृति भिन्न हों। दोनों का डीएनए बिल्कुल ही अलग है। एक समय इंदौर भी बुरी हालत में था, लेकिन उसने खुद को बदला। नेता भी वही थे, अफसर भी वही, कानून भी वही। मगर देखते ही देखते इंदौर की तस्वीर बदल गई और अब वह सही अर्थों में रहने लायक शहर बन गया।

*भोपाल प्राकृतिक रूप से रहने-बसने लायक शहर था, लेकिन बीते इतने ही वर्षों में वह लगातार दुर्गति की ओर धकेला गया। ऐसा लगता है कि देश ही नहीं, दुनिया भर के गुमटी-ठेले लगाने वाले भोपाल में हर दिन बढ़ते गए हैं। कोई सड़क, तिराहा और चौराहा नहीं बचा है, जहां अवैध कब्जे हर दिन न बढ़ रहे हों। बाढ़ आई हुई है। यह सब कौन करा रहा है, किसकी शह पर यह चल रहा है? वे जो भी हों, शहर का दम घोंट रहे हैं।*

सुंदरलाल पटवा के समय बाबूलाल गौर ने अतिक्रमण के विरुद्ध अंतिम ऐतिहासिक सख्त कार्रवाई की थी। उन्हें उस दौर मंव बुलडोजर मंत्री कहा गया था। *भोपाल के वर्तमान लीडर तो गिनीज बुक के लिए दावा कर सकते हैं-“देश में सबसे ज्यादा ठेले-गुमटी और झुग्गियों का शहर! आबादी से भी अधिक गति से इनकी प्रगति हर सड़क-चौराहे पर है।’*

महाराणा प्रताप नगर दो जोन में हैं, जो एमपी नगर के नाम से प्रसिद्ध है। दिन में भी जाकर देखिए। उसका ज्यादातर हिस्सा मैकेनिक नगर में परिवर्तित हो चुका है। किसी मैकेनिक या पुरानी गाड़ियों की दस गुण दस फुट की एक गुमटी या दुकान खुलेगी। आसपास की पूरी सड़क कब्जे में नजर आएगी। कोई फुटपाथ नहीं बचे हैं, जहां कब्जे न हों। न्यू मार्केट का कबाड़ा हो चुका है।

नए भोपाल के ये दो अति व्यस्त कारोबारी इलाके हैं, जहाँ कामगारों की एक बड़ी संख्या मुस्लिम बहुल पुराने भोपाल से आती है। वे दिन भर काम करेंगे तो तीन बार की नमाजों के लिए पुराने भोपाल तो जाएँगे नहीं, उन्हें यहीं मस्जिदें चाहिए। प्रेस परिसर में नवभारत के निकट एक पेड़ के नीचे किसी अज्ञात महापुरुष की कब्र देखते ही देखते बहुमंजिला मस्जिद में विकसित हो गई। कब्र का हरे पेंट से पुता हुआ मलबा एक दिन देखा गया। लाउड स्पीकरों पर अजान ने अखबार के दफ्तरों में मीटिंगें मुश्किल कर दीं। एमपी नगर और न्यू मार्केट के बीच अरेरा हिल्स है, जहां ज्यादातर सरकारी दफ्तर हैं। जेल पहाड़ी पर एक बड़ी मस्जिद किसी खिलजी या तुगलग ने नहीं बनवाई है।
 
नए और पुराने भोपाल के बीच निरंकुश कारोबारी मनमानियों को लेकर अभी पूर्व महापौर आलोक शर्मा ने एक मुहिम चलाई-“एक शहर में दो कानून नहीं चलेंगे।’ आलोक कभी मिलेंगे तो पूछूँगा कि ये दो कानून चल कब से रहे हैं? मेयर रहते उन्होंने क्या कदम उठाए थे और वर्तमान मेयर किस लोक से आकर किस लोक में विराजित हैं?

*डीआरएम ऑफिस के तिराहे पर रुककर कभी गौर से देखिए। गुमटियों की एक पूरी बस्ती बसी है। मुझे नहीं पता कि किसी डीआरएम ने कभी किसी मेयर को कोई पत्र लिखा या नहीं? या किसी मेयर या कमिश्नर ने इसकी वैधता को जाँचने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर कोई कागजी कार्रवाई की या नहीं?*

अन्ना नगर की सैर मुख्य मार्ग से चलते हुए कीजिए। बिजली के तारों का जाल बिछा हुआ है। मजाल है कोई हटाने का सोच ले! मुख्य मार्गों पर आ गई झुग्गी बस्तियों ने शटर लगाकर दुकानें चला दी हैं, लाखों के कारोबार धड़ल्ले से चल रहे हैं। पट्टे की सुविधा के इस दुरुपयोग पर कोई टैक्स नहीं है!

न्यू मार्केट से जहाँगीराबाद, सुलतानिया अस्पताल, भारत टॉकीज और रेलवे स्टेशन होकर भोपाल टॉकीज तक थोड़ा आराम से दोनों तरफ सड़कों का मुआयना करते हुए निकलिए। कभी दोपहर में निकलिए और कभी शाम के वक्त एक चक्कर लगा लीजिए। भोपाल की सड़ाँध का ठीक-ठीक अनुभव हो जाएगा।
ऐसा भी नहीं है कि हमारे विजयी या पराजित जनप्रतिनिधियों के लिए यह ऐसा दुरूह विषय हो, जिसका उन्हें ज्ञान न हो। वे इस विषय के परम ज्ञानी है। त्रिकालदर्शी हैं। वे इस नर्क के परम पिता हैं। वे वार्ड से लेकर मंडल तक चराचर जगत में व्याप्त हैं और एक दूसरे से उनके समन्वय अत्यंत सुदृढ़ और समझदारी भरे हैं।

*एक माननीय विधायक तो अतिक्रमण हटने की हर मुहिम में कब्जा जमाने वालों की ओर से 56 इंच की छाती तानकर खड़े हो जाते थे। वे हारकर राजनीति के पोस्टर से गायब हो चुके हैं। एक और ताजा हारे हुए विधायक झुग्गीवासियों के मसीहा कहलाते थे। दोनों शूरवीर अलग-अलग पार्टी के थे। किसी को शर्म नहीं आती, पार्टियों के झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ चल रहे हैं। इनका काम क्या है? ये प्रकोष्ठ किस प्रवृत्ति के पोषक हैं? गुमटी-ठेले, झुग्गी-झोपड़ी ज्यादातर चोरी की बिजली पर चल और पल रहे हैं। इनके पराक्रम का विस्तार अवैध पार्किंगों तक अबाध है।*

भदभदा से लेकर प्रेस काम्पलैक्स और बाग सेवनिया थाने के पीछे तक प्राइम लोकेशन की जमीनों पर तनी अनगिनत आलीशान मस्जिदों के निर्माण और विस्तार भी अखबारी कवरेज के विषय रहे हैं। उनकी भूमि की माल्कियत के वैध दस्तावेज, विभिन्न विभागों से निर्माण की आवश्यक अनुमतियाँ वगैरह सब दुरुस्त हैं? अगर नहीं हैं तो क्या उन्हें नोटिस देने की खानापूर्तियाँ भी कभी की गई हैं? प्रेस परिसर में तो अखबारों को भूखंड आवंटित हुए थे, छह फुट की एक कब्र मल्टीस्टोरी मस्जिद में किन-किन विभागों की परमीशन से खड़ी कर दी गईं? शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर लगातार लिखने वाले पत्रकार मनोज जोशी के पास इनकी फाइलें मिल जाएँगी।

*कब्जों की यह निरंकुश प्रवृति केवल भोपाल का सिरदर्द नहीं है। लेकिन हाल के वर्षों में यूपी, असम और अभी उत्तराखंड में ऐसे हर मनमाने निर्माणकर्ताओं से हर जिलों में कागजात मांगे गए हैं। जो गैर कानूनी पाए गए, बिना देर किए और बिना भेदभाव के धराशायी कर दिए गए। मगर मध्यप्रदेश अपने प्रचार की पंक्ति के अनुरूप वाकई अजब और गजब है!*

*राजधानी भोपाल तो कब्जा जमाने वालों के लिए फलती-फूलती जन्नत ही बन चुकी है। अगर यह वोटों के लालच में पनपने दिया गया है तो बीस साल का न सही, ताजे चुनाव में बूथों की लिस्ट चैक कर लीजिए। हजार वोटों में से पचास वोट भी कोई नहीं देता और जहाँ मत बाहुल्य है, वहाँ मोदी की गारंटी पर भी उनका यकीन नहीं है!*

अल्लाह का शुक्र है कि एक तरफ बीएचईएल नाम का एक प्रतिष्ठान और एयरपोर्ट की तरफ भारतीय सेना का प्रांगण भी भोपाल में है। उनके कई-कई सौ एकड़ के इलाके से गुजरते हुए लगता है कि कानून का असर यहाँ है, जो नेताओं के प्रभाव से अछूता है वर्ना दस-दस हजार झुग्गी, गुमटी और ठेलों लायक रिक्त भूमि वहाँ उपलब्ध ही थी!

भोपाल को नर्क बनने से रोकना जरूरी है। गाँधी भवन और मानस भवन में नागरिक समूहों को इस विषय में मिल बैठकर विचार करना जरूरी है कि वे 2047 के भारत में 2047 का कैसा भोपाल देखना चाहते हैं? *अगर यथास्थिति रही तो तय मानिए कि भोपाल नर्क हो ही रहा है। गहरी होती समस्या बीमारी का रूप ले रही है।*

हमें ऐसे लीडरों की जरूरत है जो अपने नफे-नुकसान से ऊपर शहरों के दूरगामी हित में सोचें और आज मिली राजनीतिक शक्ति का सही दिशा में उपयोग करें। आज जनता परफार्मेंस चाहती है। मंचों पर कोरे भाषण और घोषणाएँ, भव्य होर्डिंगों पर प्रचार और आत्मपूजा नहीं। उत्तरप्रदेश, असम और उत्तराखंड की तरह साफ विजन से कानून का निष्पक्ष पालन कराने वाले लीडर!

*प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया और हमने इसी प्रदेश में इंदौर को लगभग नर्क से बाहर निकलकर एक नए नवेले रूप में सजता हुआ देखा ही है। फिर भोपाल के डीएनए में क्या कमी है?*

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