*Sansad संसद: वादी को जजों की सम्पत्ति जानने का अधिकार होना चाहिए क्योंकि इन्हें भी सरकार वेतन देती है*
दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी की रपट भोपाल से राधावल्लभ शारदा के द्वारा संपादित जब सांसद, विधायक को चुनाव लडने के पहले सम्पत्ति, सरकार से वेतन भत्ते लेने वाले अधिकारी को सम्पत्ति की घोषणा करना अनिवार्य है तो फिर न्यायपालिका को भी करना चाहिए,महिलाओं को पीरियड लीव पर संसदीय समिति की रिपोर्ट; भाजपा सांसद बोले- वादी को जजों की संपत्ति जानने का हक
विस्तृत समाचार
संसद के शीतकालीन सत्र का दूसरा हफ्ता शुरू हो चुका है। सोमवार को संसद की कार्यवाही शुरू होने के बाद भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने बड़ी मांग रखी। उन्होंने कहा कि देश की उच्च न्यायपालिका के जजों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए। सुशील मोदी ने राज्यसभा में कहा, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य बनाया जाए।उन्होंने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए मौजूदा कानून में संशोधन करने या जरूरत पड़ने पर नया कानून बनाने का सुझाव भी दिया।
शून्यकाल के दौरान भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को कहा, उच्च न्यायालय के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए भी सालाना संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मंत्री और सिविल सेवक हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा जमा कराते हैं। ऐसे में अदालतों पर भी यह व्यवस्था लागू की जाना चाहिए। सुशील मोदी ने कहा, प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों को भी हर साल संपत्ति का ब्यौरा देना होता है।
सुशील मोदी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जनता को विधानसभा और संसद के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संपत्ति के बारे में जानने का अधिकार है। इस कारण जनप्रतिनिधियों को संपत्ति की घोषणा करते हुए हलफनामा दाखिल करना होता है। उन्होंने कहा, अगर निर्वाचन के बाद जनप्रतिनिधि संपत्ति का ब्योरा देते हैं तो सरकारी कार्यालयों में सेवारत और सरकारी खजाने से वेतन लेने वाले किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्तियों का वार्षिक विवरण घोषित करना चाहिए, भले ही वह न्यायपालिका में ही क्यों न हो।
भाजपा सांसद ने कहा, जिस तरह विधायक-सांसद के बारे में जानना जनता का हक है, अदालतों में मुकदमा लड़ने वाले वादी को भी न्यायाधीशों की संपत्ति जानने का अधिकार है। इससे न्यायिक प्रणाली में जनता का भरोसा और मजबूत होगा। सुशील कुमार मोदी ने 26 साल पुराने फैसले का जिक्र करते हुए कहा, मई 1997 में सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच ने सभी न्यायाधीशों को अपनी संपत्तियों की अनिवार्य घोषणा का आदेश पारित किया, लेकिन बाद में फुल बेंच ने घोषणा को स्वैच्छिक बना दिया। उन्होंने कहा, शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर संपत्ति घोषणा अनुभाग को 2018 से अपडेट नहीं किया गया है। हाईकोर्ट के मामले में केवल पांच उच्च न्यायालयों के चुनिंदा न्यायाधीशों ने संपत्ति का ब्यौरा दिया है। इसमें बदलाव होना चाहिए।
NMC के लोगो में बदलाव का मुद्दा
राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के लोगो में बदलाव का मुद्दा भी उठाया गया। सरकार ने एनएमसी लोगो में बदलाव का बचाव करते हुए कहा कि यह भारत की विरासत का हिस्सा है। बता दें कि लोगो में धर्मनिरपेक्ष प्रतीक के बजाय हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि को शामिल करने पर कई लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के शांतनु सेन ने लोगो में बदलाव का मुद्दा उठाया।
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने शांतनु को जवाब दिया और कहा, धन्वंतरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा, यह पहले से ही आयोग के लोगो का हिस्सा था और इसमें केवल कुछ रंग जोड़े गए हैं। इससे ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ है। मंडाविया ने कहा, ‘यह भारत की विरासत है। मुझे लगता है कि हमें इस पर गर्व महसूस करना चाहिए। लोगो देश की विरासत से प्रेरणा लेकर बनाया गया है। उन्होंने साफ किया, ‘यह चिकित्सा विज्ञान का प्रतीक है… कोई है जिसने चिकित्सा विज्ञान में इतना शोध किया है। हमने फोटो का इस्तेमाल किसी अन्य उद्देश्य से नहीं किया है।’
गौरतलब है कि भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1933 का कानून बनने के बाद 1934 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) का लोगो अपनाया गया था। इतिहास का जिक्र करते हुए तृणमूल सांसद ने कहा, लोगो में बदलाव की कोई जरूरत नहीं थी। यह एक विशेष धर्म का प्रतीक है। उन्होंने कहा, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग चिकित्सा पाठ्यक्रम को नियंत्रित करता है और नए मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी देता है। इसका काम किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देना नहीं। यहां तक कि आयुष विभाग ने भी अपना लोगो नहीं बदला, लेकिन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के लोगो में बदलाव हुआ है।
तृणमूल सांसद के मुताबिक, यह उस मूल शपथ के खिलाफ है जो डॉक्टर एमबीबीएस की डिग्री पाने के बाद लेते हैं। डॉक्टर शपथ लेते हैं कि मरीजों की जाति, पंथ या धर्म इलाज करने के आड़े नहीं आएगी। हम किसी विशेष धर्म का इलाज करने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने लोगो में बदलाव को भारतीय संविधान के मूल सार के खिलाफ करार दिया। टीएमसी सांसद के अनुसार, 1976 में 42वें संविधान संशोधन के बाद अनुच्छेद 25 और 26 के माध्यम से भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बताया गया है।
आनंदपुर साहिब संकल्प पर शिक्षा मंत्रालय का बयान
राज्यसभा से इतर लोकसभा में शिक्षा मंत्रालय से अहम सवाल पूछा गया। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की किताबों में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की व्याख्या को लेकर शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने सवाल पूछा। जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा, एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की व्याख्या ‘अलगाववादी दस्तावेज’ के रूप में नहीं की गई है। बता दें कि आनंदपुर साहिब संकल्प 1973 में शिरोमणि अकाली दल की तरफ से की गई मांगों की एक सूची वाला एक बयान था।
लोकसभा में लिखित प्रश्न के उत्तर में शिक्षा मंत्रालय ने कहा, कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की वर्तमान एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक का शीर्षक ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत की राजनीति’ है। इसकी ऑनलाइन प्रति (ncert.nic.in) उपलब्ध है। इसमें आनंदपुर साहिब संकल्प की व्याख्या ‘अलगाववादी दस्तावेज’ के रूप में नहीं की गई है। आनंदपुर साहिब संकल्प पर तत्कालीन प्रधानमंत्री और एसजीपीसी (शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति) के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। शिक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह संधि अलग सिख राज्य की मांग नहीं है।
महिलाओं को पीरियड के दौरान छुट्टी पर सरकार का जवाब
स्थायी संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मासिक धर्म ज्यादातर महिलाओं को कमजोर करता है। इससे दफ्तरों / कार्यस्थल पर उनका प्रदर्शन भी प्रभावित होता है। समिति ने महिलाओं की सेहत का ध्यान रखने के मकसद से उन्हें हर महीने मासिक धर्म अवकाश या बीमार पड़ने पर मिलने वाली छुट्टी या आधे वेतन वाले अवकाश की सिफारिश की थी। समिति का मानना है कि ऐसी छुट्टियों के बदले में महिलाओं से कोई मेडिकल प्रमाणपत्र नहीं मांगा जाना चाहिए।
संसदीय समिति ने सोमवार को संसद के पटल पर अपनी रिपोर्ट पेश की। पैनल ने कहा कि केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियम, 1972 के तहत केंद्रीय महिला सरकारी कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश समेत कई छुट्टियां मिलती हैं। अवकाश के रूप में कई तरह के प्रोत्साहन के साथ-साथ मां बनने पर महिलाओं को बच्चे की देखभाल के लिए भी छुट्टी मिलती है।
संसदीय समिति की सिफारिश- सभी उच्च न्यायालयों में जल्द लागू हो मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग
अदालतों में न्याय पाने में होने वाले संघर्ष और दूर-दराज के इलाकों से आने वाले वादियों की परेशानी दूर करने के लिए मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंस की सुविधा बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। देश के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल दो में यह सुविधा मिल रही है। संसदीय समिति ने सोमवार को अपनी सिफारिश में कहा कि मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंस की सुविधा जल्द से जल्द सभी उच्च न्यायालयों में लागू किया जाए। कानून और कार्मिक मंत्रालयों से जुड़ी स्थायी संसदीय समिति ने कहा था, उसकी राय में न्यायपालिका को अधिवक्ताओं और वादियों की मदद के लिए तकनीकी और नए समाधानों पर भी विचार करना चाहिए।
किन राज्यों में लंबित है काम
दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू करने पर केंद्रीय कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने जवाब दिया। विभाग के अनुसार, मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के संबंध में सभी उच्च न्यायालयों से बात की गई है। तेलंगाना उच्च न्यायालय में लागू व्यवस्था को मॉडल के रूप में अपनाने पर विचार का अनुरोध भी किया गया है। विभाग ने संसदीय समिति के साथ जो रिपोर्ट साझा की है, इसके अनुसार, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालयों में सिफारिश लागू हो चुकी है। कलकत्ता, गौहाटी, मणिपुर, राजस्थान और सिक्किम उच्च न्यायालयों में मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का ‘काम प्रगति पर’ है। इलाहाबाद, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उड़ीसा उच्च न्यायालयों में ‘प्रस्ताव विचाराधीन’ है।
‘धार्मिक महत्व’ वाले ASI संरक्षित धरोहरों पर पूजा का अधिकार मिलना चाहिए: संसदीय समिति
संसदीय पैनल ने केंद्र से सिफारिश की है कि देश की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ने की सूरत में लोगों को पूजा का अधिकार मिलना चाहिए। समिति के अनुसार, ‘धार्मिक महत्व’ वाले एएसआई-संरक्षित स्मारकों पर पूजा की अनुमति देने की संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति विभाग से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने संसद में 364वीं रिपोर्ट पेश की। समिति की ‘324वीं रिपोर्ट में शामिल समिति की सिफारिशों पर सरकार की कार्रवाई को लेकर पेश रिपोर्ट में पैनल ने अपनी टिप्पणी में कहा, समिति को लगता है कि देश भर में कई ऐतिहासिक स्मारक बड़ी संख्या में लोगों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखते हैं। ऐसे स्मारकों पर पूजा/प्रार्थना/कुछ धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से लोगों की वैध आकांक्षाएं पूरी हो सकती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया, समिति सिफारिश करती है कि धार्मिक महत्व के ऐतिहासिक संरक्षित स्मारकों पर पूजा या धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने की संभावना तलाशी जा सकती है। एएसआई ने साफ किया कि अनुमति केवल तभी दी जाए जब सुनिश्चित कर लिया जाए कि इन धार्मिक गतिविधियों का संरक्षित स्मारकों पर कोई हानिकारक असर नहीं पड़ेगा। संस्कृति मंत्रालय ने पैनल की टिप्पणियों पर कहा, सिफारिशें कितनी व्यवहारिक हैं, इसकी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।