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UCC समान नागरिक संहिता पर फैसला लेने का अधिकार विधायिका को नहीं दे सकते निर्देश, खारिज की याचिका

UCC समान नागरिक संहिता पर फैसला लेने का अधिकार विधायिका को नहीं दे सकते निर्देश, खारिज की याचिका
दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी एवं भोपाल से राधावल्लभ शारदा की रपट लॉ कमीशन ने जून में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जनता, मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों और अन्य हितधारकों से विचार और सुझाव मांगे थे
दिल्ली हाई कोर्ट ने समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
समान नागरिक संहित (UCC) लागू करने को लेकर दायर याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस बारे में फैसला लेना विधायिका का काम है। हम सरकार को इस मसले पर कानून लाने के लिए निर्देश नहीं दे सकते हैं।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहर और मिनी पुष्करणा की बेंच ने कहा कि वह विधायिका को इस संबंध में कानून लाने का निर्देश नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मुद्दे को लेकर कई याचिकाएं खारिज कर चुका है। कोर्ट ने आगे कहा कि विधि आयोग के पास पहले से ही मामला है और याचिकाकर्ता अपने सुझावों के साथ विधि आयोग से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।

लॉ कमीशन ने जून में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जनता, मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों और अन्य हितधारकों से विचार और सुझाव मांगे थे। इसके बाद याचिकाकर्ता भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय और निघत अब्बास, अंबर जैद सहित अन्य ने अपनी याचिकाएं वापस ले लीं।
2019 में उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका में केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए एक न्यायिक आयोग या एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका में सभी धर्मों, संप्रदायों, विकसित देशों के नागरिक कानूनों और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की सर्वोत्तम प्रथाओं पर विचार करने के बाद देश के लिए यूसीसी की मांग की गई।

याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने याचिका खारिज करने की मांग की। कानून मंत्रालय ने कहा कि यूसीसी को विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के गहन अध्ययन के बाद ही पेश किया जा सकता है और इसे कोर्ट के आदेशों के आधार पर तीन महीने में नहीं किया जा सकता है।

कानून मंत्रालय ने दायर एक हलफनामे में कहा कि संवैधानिक योजना के तहत, केवल संसद ही ऐसा कार्य कर सकती है और कोई कोर्ट किसी विशेष कानून को लागू करने के लिए विधायिका को रिट जारी नहीं कर सकती है।

कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट है और हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश से आगे नहीं जा सकता। इसलिए, उसने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

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