*Superm court आखिर महिला जज सुप्रीम कोर्ट तक क्यों नहीं आ पाती , कौन रोकता है* दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी की रपट महादण्ड के लिए नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट में 96% जज पुरुष, हाईकोर्ट में सिर्फ 13% महिला न्यायाधीश; न्यायपालिका में ‘आध 1989 के बाद से केवल 10 महिलाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं
सुप्रीम कोर्ट की जज बनने वाली पहली भारतीय महिला जस्टिस फातिमा बीवी का गुरुवार को 96 साल की उम्र में केरल के कोल्लम में निधन हो गया। 1989 में अपनी नियुक्ति के साथ जस्टिस बीवी सर्वोच्च न्यायालय की पहली मुस्लिम महिला जज और एशिया में पहली महिला सुप्रीम कोर्ट जज बनी थीं।
जस्टिस बीवी में स्वीकार किया था कि न्यायपालिका एक पितृसत्तात्मक संस्था (पुरुषों के वर्चस्व वाली संस्था) है। उनका एक बयान बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने अपनी नियुक्ति के साथ ही महिलाओं के लिए “दरवाजा खोल दिया”।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
1989 के बाद से केवल 10 महिलाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के 33 न्यायाधीशों में से केवल तीन महिला न्यायाधीश हैं- जस्टिस हिमा कोहली; बेला त्रिवेदी; और बीवी नागर त्ना। जस्टिस नाग रत्ना 25 सितंबर, 2027 को भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं, उनका कार्यकाल केवल 36 दिनों का होगा।
2021 में शीर्ष अदालत में जस्टिस कोहली, नाग रत्न और त्रिवेदी की नियुक्ति अपने आप में ऐतिहासिक घटना थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में एक साथ इतनी सारी महिला जजों को नियुक्त करने का यह पहला मौका था। इसके अलावा यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार हमारे पास सुप्रीम कोर्ट में एक साथ चार महिला न्यायाधीश थीं, जो अब तक की सबसे अधिक संख्या हैं
इसके अलावा भारत की शीर्ष अदालत के इतिहास में केवल आठ अन्य महिला न्यायाधीश रही हैं। उनमें जस्टिस सुजाता मनोहर, रूमा पाल, ज्ञान सुधा मिश्रा, रंजना देसाई, आर. भानुमति, इंदु मल्होत्रा, इंदिरा बनर्जी और फातिमा बीवी शामिल हैं।
इसका मतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में कुल 268 न्यायाधीशों में से केवल 11 महिलाएं रही हैं। दूसरे शब्दों में सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों में से केवल 4.1% महिलाएं हैं, जबकि शेष 96% पुरुष हैं।
वर्तमान में भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं जिनमें न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या 1,114 है। हालांकि, न्याय विभाग की वेबसाइट के अनुसार केवल 782 न्यायाधीश ही कार्यरत हैं जबकि शेष 332 न्यायाधीशों के पद खाली हैं। इनमें से केवल 107 न्यायाधीश महिलाएं हैं। यानी भारत के उच्च न्यायालयों के कुल न्यायाधीशों में महिला न्यायाधीश 13% हैं।
वर्तमान में गुजरात उच्च न्यायालय को छोड़कर, देश किसी उच्च न्यायालय में महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं हैं। कॉलेजियम ने इस साल जुलाई में न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल को गुजरात हाईकोर्ट में नियुक्त किया था क्योंकि देश के किसी हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर कोई महिला जज नहीं थी।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच कमजोर वर्गों के प्रतिनिधित्व पर लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी के एक सवाल का जवाब देते हुए, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जुलाई में कहा था कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 224 के तहत की जाती हैं, जो “किसी भी जाति या व्यक्तियों के वर्ग के लिए” आरक्षण प्रदान नहीं करता है।
हालांकि इसके बावजूद केंद्र ने अनुरोध किया है कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इस प्रक्रिया में “सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने” के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय उपयुक्त उम्मीदवारों पर विचार करें जो महिलाओं, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग से आते हों।
इससे पहले फरवरी में उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायाधीशों और वकीलों की संख्या पर राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के एक सवाल का जवाब देते हुए, तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने खुलासा किया था, “31.01.2023 तक उच्च न्यायालयों में 1108 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 775 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जिनमें से 106 महिला न्यायाधीश और 669 पुरुष न्यायाधीश हैं। वर्तमान में देश के किसी भी उच्च न्यायालय में कोई भी महिला मुख्य न्यायाधीश कार्यरत नहीं है।”
निचली न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर साल 2018 में ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ ने एक रिपोर्ट पब्लिश की थी, जिसमें बताया गया था कि निचली न्यायपालिका में 15,806 न्यायाधीश हैं।
रिपोर्ट में पाया गया कि तीन सबसे छोटे राज्यों – गोवा , मेघालय और सिक्किम में कुल 103 न्यायाधीश हैं। इन राज्यों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत 60% से अधिक है। वहीं तेलंगाना और पुदुचेरी को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत 40% से कम रहा है।
हालांकि उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं है, लेकिन आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तराखंड सहित कई राज्यों ने निचली न्यायपालिका में महिलाओं के लिए कोटा प्रदान किया है। उनके लिए कुल सीटों का 30% से 35% के आरक्षित किया गया।
हाल ही में इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 नामक एक अन्य अध्ययन से पता चला कि “उच्च न्यायालयों के केवल 13% न्यायाधीश और निचली अदालतों में 35% न्यायाधीश महिलाएं हैं।” रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला अदालतों के स्तर पर, गोवा में महिला न्यायाधीशों की संख्या सबसे अधिक या 70% थी। मेघालय में यह संख्या 62.7%, तेलंगाना में 52.8% और सिक्किम में 52.4% है।
न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम क्यों?
न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व की कमी के कारणों में “पुरानी मानसिकता” शामिल है, जिससे महिलाओं के लिए न्यायिक पदों के लिए पैरवी करना कठिन हो जाता है। 2017 में द गार्जियन से बात करते हुए, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने पुरुषों द्वारा अन्य पुरुषों को मिलने वाली मदद की तरह इशारा किया था, जैसे उनके (पुरुषों) मामलों को पहले सुनने का मौका, पुरुष वकीलों से बात करते समय पुरुष न्यायाधीशों का दोस्ताना बॉडी लैंग्वेज। सिंह बताती हैं, “किसी समुदाय के साथ जुड़ाव न होना निराशाजनक है। महिलाओं संख्या अब बढ़ रही हैं, लेकिन वे भी बहुत बंधी हुई नहीं हैं, वे अलग-थलग हैं।”
इसके अलावा, यौन उत्पीड़न, लोगों द्वारा हाई रिस्क वाले मामलों में महिला अधिवक्ताओं पर भरोसा न करना और शौचालय से लेकर मातृत्व अवकाश तक की बुनियादी ढांचे की कमी भी न्यायपालिका में महिलाओं की कम संख्या के लिए जिम्मेदार हैं।
निचली न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय से बेहतर है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि निचली न्यायपालिका में प्रवेश एक परीक्षा के माध्यम से होता है, जबकि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कॉलेजियम द्वारा किया जाता है।