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C AA – नागरिकता संशोधन कानून क्या है, क्या मार्च में लागू कर देगी इसे मोदी सरकार?*

*C AA – नागरिकता संशोधन कानून क्या है, क्या मार्च में लागू कर देगी इसे मोदी सरकार?*

दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी के साथ भोपाल से जिग्नेश पटेल की रपट महादण्ड के लिए
उत्तर प्रदेश में मतुआ समुदाय को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनयम का फाइनल ड्राफ्ट अगले साल 30 मार्च तक तैयार होने की उम्मीद है.
नागरिकता संशोधन कानून क्या है, क्या मार्च में लागू कर देगी इसे मोदी सरकार?
चार साल पहले यानी साल 2019 में जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू करने की बात की थी तो उस वक्त देशभर में इस कानून का जमकर विरोध किया गया था. अब भारत में साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव से पहले प्रचार प्रसार के दौरान 26 नवंबर को उत्तर प्रदेश के ठाकुर नगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने बड़ा बयान दे दिया है.
उत्तर प्रदेश के ठाकुर नगर में मतुआ समुदाय को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनयम का फाइनल ड्राफ्ट अगले साल 30 मार्च तक तैयार होने की उम्मीद है. इसी जनसभा में मिश्रा कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में सीएए को लागू करने की प्रक्रिया में तेजी आई है. फिलहाल कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसे सुलझाया जा रहा है.
इससे पहले गृह मंत्रालय ने 2020-21 के लिये अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 एक सहानुभूतिपूर्ण और सुधारात्मक कानून है और यह किसी भी भारतीय को नागरिकता से वंचित नहीं करता है.
बीजेपी नेता के इस बयान से साफ है कि अब अगले साल देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू कर दिए जाएंगे. ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर नागरिकता संशोधन कानून क्या है और इसका विरोध क्यों किया जाता रहा है.
*क्या है नागरिकता कानून अधिनियम 2019*
नागरिकता संशोधन अधिनियम को आसान भाषा में समझे तो इस कानून के तहत भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासी, इनमें भी 6 समुदाय (हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी) को भारत की नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है.
नागरिकता संशोधन अधिनियम से पहले किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम 11 साल तक इस देश में रहना जरूरी था. हालांकि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत इस 11 साल के नियम को आसान बनाया गया है और भारत की नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 से 6 साल कर दिया गया. यानी भारत के इन तीनों पड़ोसी देशों के 6 धर्मों के लोग पिछले एक से छह सालों में भारत आकर बसे हैं तो उन्हें भी भारत की नागरिकता मिल सकेगी.
*कौन हैं ये अवैध प्रवासी*
नागरिकता कानून, 1955 के तहत अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है. इस कानून के तहत वो लोग अवैध प्रवासी हैं जो इस देश में बिना किसी पासपोर्ट या वीजा के घुस आए है या फिर पासपोर्ट, वीजा या वैध दस्तावेज तो लेकर आए हैं लेकिन वह तय किए गए समय से ज्यादा दिनों तक यहां रुक गए हों.
*पहले इन अवैध प्रवासियों को लेकर क्या नियम थे*
विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत भारत से अवैध प्रवासियों को उनके देश भेजा जा सकता है. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा साल 2015 और साल 2016 में विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 के कानून में संशोधन किया गया. इस संशोधन के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन को छूट दे गया.
यानी इन 6 धर्मों के लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बिना भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है न ही वापस भेजा जा सकता है. यह छूट सिर्फ उन 6 धार्मिक समूह के लोगों के लिए दिया गया जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आए थे. अब इन्हीं 6 धर्म के लोगों से संबंध रखने वालों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए और नागरिकता कानून, 1955 में कुछ बदलाव करते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 संसद में पेश किया गया था.
*2016 में पेश किए गए विधेयक का क्या हुआ*
19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पेश किया गया था और एक महीने बाद यानी 12 अगस्त, 2016 को इस विधेयक को संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा दिया गया था. जिसकी रिपोर्ट 7 जनवरी, 2019 को सौंपी गई. कमेटी के रिपोर्ट सौंपने के एक दिन बाद यानी 8 जनवरी, 2019 को इस विधेयक को लोकसभा में पास कर दिया गया. हालांकि उस वक्त यह विधेयक राज्यसभा में पेश नहीं हो पाया था. इसके बाद शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार की फिर से नए सिरे से इस विधेयक को पेश करने की तैयारी है.
नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (C A A) को 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पेश किया गया. यहां से पास होने के बाद 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया जिसमें 125 वोट विधेयक के पक्ष में पड़े थे और 99 वोट इसके खिलाफ में पड़े थे. इसके बाद 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति द्वारा इसे मंजूरी दे दी गई और भारी विरोध के बीच यह बिल दोनों सदनों से पास होने के बाद कानून की शक्ल ले चुका था. हालांकि, कानून अभी लागू होना बाकी है क्योंकि सी ए ए के तहत नियम बनाए जाने अभी बाकी हैं
*किन पर लागू होता है नागरिकता संशोधन विधेयक 2019*
नागरिकता संशोधन विधेयक उन्हें अपने आप नागरिकता नहीं देता है बल्कि अवैध प्रवासियों को आवेदन करने के लिए योग्य बनाता है. ये कानून उन लोगों पर लागू होगा जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए थे. इस कानून के तहत इन प्रवासियों को भारत की नागरिकता पाने के लिए आवेदन करना होगा. इसमें कुछ अहम बातों की पुष्टि करनी होगी-
आवेदन करने वाले अवैध प्रवासियों को दिखाना होगा कि वो भारत में कम से कम पांच साल तक रह चुके हैं.
प्रवासियों को साबित करना होगा कि वे अपने देश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हैं.
इसके साथ ही वो प्रवासी नागरिकता कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को पूरा करते हों.
इस अहम बातों की पुष्टि करने के बाद ही भारत सरकार किसी भी प्रवासी को लेकर निर्णय करेगी कि वो उन्हें इस देश की नागरिकता देंगे या नहीं.
*इस कानून का क्यों होता रहा है विरोध*
दरअसल नागरिकता संशोधन कानून का विपक्ष सबसे ज्यादा विरोध करते आए हैं. विपक्षी अनुसार इस पूरे कानून के तहत मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है.
हाल ही में बीजेपी के नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के सी ए ए का फाइनल ड्राफ्ट अगले साल 30 मार्च तक तैयार होने की उम्मीद के बयान पर तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन कहा कि भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ चुनाव के दौरान मतुआ और सी ए ए की याद आती है.
उन्होंने कहा कि बीजेपी पार्टी पश्चिम बंगाल में कभी भी नागरिक संशोधन कानून को लागू नहीं कर पाएगी. इस पार्टी के झूठे दावे मतुआ और बाकी जनता के सामने साफ हो चुके हैं. अगले साल के चुनावों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़े़गा.
*सी ए ए की चुनौतियां*
नागरिकता संशोधित अधिनियम साल 1985 के असम समझौते का खंडन करता है, इस समझौते में कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाला कोई भी अवैध प्रवासी, चाहे वो किसी भी धर्म के हों, को निर्वासित कर दिया जाएगा.
वर्तमान में असम में 20 मिलियन के आस-पास अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं. ये प्रवासी राज्य के संसाधनों और अर्थव्यवस्था पर दबाव डालने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी को अनिवार्य रूप से परिवर्तित करते हैं.
इस कानून के आलोचकों का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है.
*इसके अलावा भारत में कई ऐसे शरणार्थी हैं जिनमें तमिल, म्यांमार और श्रीलंका के रोहिंग्या हिंदू शामिल हैं जो कि इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं.*

सी ए ए को लागू करने से पहले एक और बड़ी चुनौती सरकार के ये होगी कि उनके लिए अवैध प्रवासी और सताए गए लोगों के बीच अंतर करना मुश्किल होगा.
*हिंदुत्व की पिच तैयार करने में जुटी बीजेपी*
नागरिकता संशोधन कानून वैसे तो पूरे देश में लागू होने हैं लेकिन पिछली बार इसका विरोध ज्यादातर पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में ही किया गया था. इसके एक कारण ये भी है कि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के काफी करीब हैं.
पूर्वोत्तर के इन राज्यों में इस कानून का विरोध इस बात को लेकर भी हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीके से आकर बस जा रहे हैं.
विरोध करने वाली पार्टियों और लोगों का मानना है कि वर्तमान की केंद्र सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करना चाहती है और इसलिए प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है.
चुनाव से पहले सी ए ए लाने की राजनीति को समझिए
90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था तो इसमें शामिल कार्यकर्ताओं के बीच एक नारा बहुत लोकप्रिय हुआ था, ‘अयोध्या तो बस झांकी है काशी मथुरा बाकी है.’
2014 के बाद से ही जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है तब से बीजेपी अपने हिंदुत्ववादी राजनीति को धार देने में जुटी हुई है. पार्टी को इसका फायदा भी मिल रहा है. अयोध्या में जहां राम लला को 24 जनवरी 2024 को विराजमान किया जाएगा, वहीं उत्तर प्रदेश के मथुरा में अब बांके बिहारी मंदिर में विशेष कॉरिडोर का निर्माण होने जा रहा है. बीजेपी ने साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा सेट कर दिया है. नागरिकता संशोधन कानून बीजेपी की इसी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है.
शाहीन बाग आंदोलन के समय भले ही पार्टी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हार गई हो लेकिन इसे लेकर अन्य राज्यों में जो माहौल बना था पार्टी अब उसे एक बार फिर दोबारा भुनाने की कोशिश करेगी.

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