*भोपाल की निकम्मी पुलिस और बुडलेंड के जूते खाते कथित पत्रकार,* बात पुरानी है आज इसलिए लिखने में आ रही है कि अभी कुछ दिन पहले दो पत्रकारों के साथ घटनाएं हो गई। एक महिला पत्रकार के साथ हुईं घटना पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की , वहीं एक पुरुष पत्रकार की शिकायत एक महिला ने लिखित में दी तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली। महिला पत्रकार अपने वकील के माध्यम से न्यायालय की शरण में गई तो न्यायाधीश महोदया ने प्रकरण महिला थाने में जांच के लिए भेज दिया। महिला थाने की मुखिया अधिकारी ने महिला पत्रकार के कथन ले लिया लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की जांच करेगी। एक वाकया याद आ गया एक पुरुष पत्रकार ने 2018 में लिखित में शिकायत की परंतु टी टी नगर थाने के अधिकारियों ने एफआईआर दर्ज नहीं की, तीन बार वयान लिए परंतु यह कहकर एफआईआर दर्ज नहीं की कि ऊपर अधिकारियों से बात करने के बाद एफआईआर दर्ज करेंगे तो अभी तक ऊपर अधिकारियों से बात नहीं कर पाए। पत्रकार ने वकील के माध्यम से न्यायालय की शरण में न्याय मिलने की उम्मीद में गया भारतीय दंड संहिता की धारा 156/3 में आवेदन दिया माननीय न्यायाधीश महोदय ने एफआईआर लिखने के लिए पुलिस को आदेशित करने के स्थान पर प्रकरण निरस्त कर दिया। पत्रकार ने वकील के माध्यम से पुनः धारा 200 के तहत मामला न्यायालय में प्रस्तुत किया और पुनः मामला निरस्त हो गया। पुलिस और न्यायाधीश के निर्णय पर उंगली नहीं उठाई जा सकती नहीं तो और मुश्किल बढ़ सकती हैं।मन हो गया लिखने का और घटनाएं याद आने लगी। एक कोई भानुप्रताप सिंह है उन्होंने अपनी फेसबुक पर लिखा कि भोपाल के कथित पत्रकारों को वुडलैंड के जूते गीले कर इतने मारो की जूते फट जाए। मैं न तो भानुप्रताप सिंह को जानता और न ही फेसबुक देखता एक पत्रकार मित्र को फेसबुक की बात नागवार लगी तो उन्होंने उसका प्रिंट मुझे लाकर दिया मुझे भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि मैं कथित पत्रकार नहीं हूं 1970 में आर टी ओ आफिस की नौकरी छोड़ पत्रकारिता में सम्मान के साथ जीने के लिए आया और आज भी सम्मान के साथ जीते हुए पत्रकार समाज के लिए काम कर रहा हूं। अब मैं उस फेसबुक पर अभद्रतापूर्ण टिप्पणी करने वाले की घटना का कुछ विवरण रख रहा हूं। मैंने एक पत्र संचालक जनसंपर्क श्री आशुतोष प्रताप सिंह जी को लिखा आशुतोष प्रताप सिंह स्वयं आई पी एस है उन्हें भी बह पोस्ट अच्छी नहीं लगी उनके द्वारा एक पत्र भोपाल पुलिस के साइबर सेल के एस पी को लिखा, मैंने ए सांई मनोहर से चर्चा की उन्होंने पुलिसिया रोब दिखाया और कहा कि मेरा कोई कुछ नहीं विगाड सकते। जैसे तैसे मामले की जांच टी टी नगर थाने के एक अदने अधिकारी ने की कारण मैंने पूर्व पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा तब कार्यवाही शुरू हुई और मुझसे कथित पुलिस की वर्दी धारी ने उस फेसबुक पर सबाल किये मैंने पहले ही लिखा है कि मैं फेसबुक नहीं देखता अब प्रश्न यह है कि शिकायत करता ही सबूत दे तो फिर पुलिस की क्या अहमियत,साईवर सेल किस लिए। क्या भोपाल पुलिस का साईवर सेल विभाग के अधिकारियों में भी उस फेसबुक पर अभद्रतापूर्ण टिप्पणी पत्रकारों पर करने वाले का रोव है या बह बड़ा राजनेता हैं और अंत में प्रश्न चिन्ह पुलिस पर लगता है कि उस भानुप्रताप सिंह ने पुलिस को नोटों की गड्डीयां दी। अब मैंने भोपाल के बड़े बड़े समाचार पत्रों के मालिकों की गुलामी करने वाले कथित पत्रकारों की बात करता हूं उन्हें बुडलेंड के गीले जूते खाने की आदत है साख या मान सम्मान से बड़ा है उनके लिए पैसा।बुडलेंड के जूते की बात भोपाल के अधिकांश पत्रकारों को मालूम होगी लेकिन कथित पत्रकार हैं तो किसी ने भी जहमियत नहीं उठाई कि इस प्रकरण में पुलिस महानिदेशक से चर्चा कर कार्यवाही की बात रखते।
