Aajad भारत में सबसे अधिक वेतन भत्ते पाने बालों में तीसरे नंबर पर है चीफ जस्टिस
दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी के साथ भोपाल से राधावल्लभ शारदा द्वारा संपादित रपट
भारत में सबसे अधिक वेतन महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के बाद मुख्य न्यायाधीश और फिर प्रधानमंत्री का नंबर आता है भारत की आजादी से अब तक कितनी बार बढ़ी और अब कितना है वेतन न्यायाधीशों का
आजादी के समय बस 5000 थी चीफ जस्टिस की सैलरी, जानिये अब CJI चंद्रचूड़ की कितनी तनख्वाह
आजादी से पहले CJI को 7000 रुपये प्रतिमाह सैलरी मिलती थी. 1950 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) की सैलरी घटाकर 5000 रुपये प्रतिमाह कर दी गई
सीजेआई को प्रतिमाह 2.80 लाख रुपये तनख्वाह मिलती है ।
1947 में जब देश आजाद हुआ तब जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने जो सबसे पहला काम किया वो था सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों की सैलरी में संशोधन. आजादी से पहले अंग्रेजी हुकूमत में फेडरल कोर्ट (इसकी जगह सुप्रीम कोर्ट ने ली) के चीफ जस्टिस को हर महीने 7000 रुपये तनख्वाह मिलती थी. इसी तरह फेडरल कोर्ट के जज को 5500 रुपये, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को 5000-6000 रुपये प्रतिमाह के बीच और जजों को 4000 रुपये प्रतिमाह सैलरी मिलती थी, लेकिन आजादी के फौरन बाद इनकी सैलरी घटा दी गई.
आजादी के बाद कितनी सैलरी तय हुई?
1950 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) की सैलरी घटाकर 5000 रुपये प्रतिमाह कर दी गई, जबकि उच्चतम न्यायालय के जजों और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की सैलरी 4000 रुपये महीने की गई. इसी तरह हाई कोर्ट के जजों की सैलरी 3500 रुपये प्रतिमाह निर्धारित की गई.
बॉम्बे हाई कोर्ट के एडवोकेट और मौजूद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब ‘Supreme Whispers’ में लिखते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जजों की तनख्वाह लंबे समय तक बढ़ी नहीं उल्टा आजादी के बाद उनकी तनख्वाह और भी घटा दी गई. जब नेहरू सरकार ने जजों की सैलरी घटाने का फैसला किया तब भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश हरीलाल जे. कानिया ने इसका विरोध भी किया.
भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश हरिलाल जे. कानिया
अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि सीजेआई हरीलाल जे. कानिया, पंडित नेहरू से अमेरिकन एंबेसी के एक कार्यक्रम में मिले. वहां उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि जिस तरीके से जजों की सैलरी घटाने का प्रस्ताव रखा गया है, इससे न्यायालय को योग्य जज नहीं मिल पाएंगे और नकारात्मक परिणाम भुगतना होगा.
नेहरू ने सोचा दूसरा रास्ता
पंडित नेहरू ने इस समस्या से निपटने का जो तरीका सोचा वह यह था कि जजों की सैलरी तो नहीं बढ़ाई जाएगी लेकिन दूसरी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएंगी. जैसे उन्हें रेंट फ्री घर या मुफ्त कार या कार अलाउंस जैसी चीजें दे दी जाएंगी. इस संबंध में उन्होंने गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को चिट्ठी भी लिखी.
साल 1950 से लेकर 1985 तक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अथवा जजों की सैलरी में कोई बदलाव नहीं हुआ और यथावत बरकरार रही. जबकि इस दौरान महंगाई कई गुना बढ़ी. मसलन 1964 में जो महंगाई दर 13.3 फीसदी थी वह 1974 आते-आते 28.6 फ़ीसदी पहुंच गई. जज सैलरी बढ़ाने की मांग करते रहे लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. नतीजतन कई दिग्गज वकीलों ने जजशिप लेने से इनकार कर दिया.
आजादी के 39 साल बाद बढ़ी सैलरीआजादी के बाद साल 1986 में पहली बार संविधान संशोधन कर जजों की सैलरी में इजाफा किया गया. तब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सैलरी 10000 प्रतिमाह तय की गई. जबकि सुप्रीम कोर्ट के जज और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की सैलरी 9000 रुपये तय की गई. इसी तरह हाई कोर्ट के जजों की सैलरी 8000 प्रतिमाह निर्धारित की गई.
1986 के बाद एक नियमित अंतराल पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों की सैलरी में इजाफा होता रहा. मसलन- 1998, 2009 और 2018.
अब CJI और जजों की कितनी सैलरी?फिलहाल भारत के मुख्य न्यायाधीश यानी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को हर महीने 2,80,000 लाख रुपए सैलरी मिलती है. हर महीने 45000 हजार रुपए सत्कार भत्ता भी मिलता है. एक मुश्त 10 लाख रुपए फर्निशिंग अलाउंस के तौर पर मिलते हैं. इसी तरह उच्चतम न्यायालय के जजों को हर महीने 2,50,000 लाख रुपए सैलरी मिलती है, जबकि 34000 हजार रुपये महीना सत्कार भत्ता मिलता है. उन्हें भी एक मुश्त 8 लाख रुपए फर्निशिंग अलाउंस के तौर पर भी मिलते हैं.
हाईकोर्ट की बात करें तो चीफ जस्टिस को प्रति महीने 2,50,000 लाख रुपये तनख्वाह मिलती है. इसके अलावा 8,00,000 फर्निशिंग अलाउंस और 34000 रुपये प्रतिमाह सत्कार भत्ता मिलता है. वहीं, हाईकोर्ट के जजों को 2,25,000 प्रतिमाह सैलरी मिलती है. 27000 हजार प्रतिमाह सत्कार भत्ता, मिलता है फर्निशिंग अलाउंस के तौर पर 6 लाख रुपये एक मुश्त मिलते हैं.
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