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Constitution की प्रस्तावना में क्यों लिखा है ‘हम भारत के लोग’ भगवान के नाम से संविधान की शुरुआत का प्रस्ताव हो गया था खारिज , कामथ की प्रतिक्रिया थी: “सर, यह हमारे इतिहास में एक काला दिन है। भगवान भारत को बचाए

Constitution की प्रस्तावना में क्यों लिखा है ‘हम भारत के लोग’ भगवान के नाम से संविधान की शुरुआत का प्रस्ताव हो गया था खारिज , कामथ की प्रतिक्रिया थी: “सर, यह हमारे इतिहास में एक काला दिन है। भगवान भारत को बचाए।” महावीर त्यागी के सवाल पर अंबेडकर को देना पड़ा था जवाब पत्रकार राम बहादुर राय ने प्रभात प्रकाशन से छपी अपनी किताब ‘भारतीय संविधान-अनकही कहानी’ में प्रस्तावना पर हुई बहस को लिखा है।
संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान की प्रस्तावना को समझाते हुए कहा था कि इसके तीन हिस्से हैं-पहला घोषणात्मक है, दूसरा वर्णनात्मक है, तीसरा लक्ष्यमूलक है।
अंबेडकर ने पहले हिस्से का प्रारंभ ‘हम भारत के लोग’ शब्द से करने का प्रस्ताव रखा था। संविधान सभा के सदस्य महावीर त्यागी ने अंबेडकर को टोकते पूछा, ‘लोग कहाँ से आ गए?” इस कार्य में तो संविधान सभा के सदस्य हैं?
पत्रकार रामबहादुर राय ने अपनी किताब ‘भारतीय संविधान-अनकही कहानी’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं, “अपनी चुटीली शैली में महावीर त्यागी बड़ी बात कहने के लिए जाने जाते रहे थे। उस दिन भी उन्होंने एक गंभीर मुद्दा उठा दिया था, जिसे डॉ. अंबेडकर ने समझा और जवाब में कहा कि ‘मेरे मित्र त्यागी कह रहे हैं कि संविधान सभा का निर्वाचन एक संकीर्ण मताधिकार के आधार पर हुआ था। यह बिल्कुल सत्य है। लेकिन जो विषय हमारे सामने है, उसका इससे कोई संबंध नहीं है। उन्होंने अमेरिका के संविधान का उदाहरण देकर सदस्यों को निरुत्तर किया। इस तरह अमेरिका की तर्ज पर ही प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम भारत के लोग’ से हुई।”
राय आगे लिखते हैं, “प्रस्तावना किसी भी संविधान की आत्मा होती है। संविधान का दर्शन उसकी प्रस्तावना में होता है। देश की आस्थाएं, आधारभूत मूल्य और भविष्य की दिशा के संकेत, इसमें दिए जाने का चलन तब से है, जब से संविधान बनना शुरू हुआ।”
भारतीय संविधान की प्रस्तावना 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य संकल्प पर आधारित है। यह प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 को अपनाया गया था।
संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने सदस्यों से कहा, “अब समय आ गया है जब आपको इस प्रस्ताव पर अपना वोट देना चाहिए। अवसर की गंभीरता और इस संकल्प में शामिल प्रतिज्ञा और वादे की महानता को याद करते हुए, मुझे आशा है कि प्रत्येक सदस्य इसके पक्ष में अपना वोट देते समय अपने स्थान पर खड़ा होगा।”
यूएसएसआर की तर्ज पर यूआईएसआर बनाया जाए- हसरत मोहानी
17 अक्टूबर, 1949 को संविधान सभा ने प्रस्तावना को चर्चा के लिए लिया। हसरत मोहानी ने प्रस्ताव दिया कि भारत को “एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य” के रूप में नामित करने के बजाय, यूएसएसआर की तर्ज पर भारतीय समाजवादी गणराज्यों का एक संघ (यूआईएसआर) बनाया जाए। इस पर देशबंधु गुप्ता ने आपत्ति जताई, जिन्होंने तर्क दिया कि यह अनुचित है क्योंकि यह हमारे द्वारा पारित संविधान के विपरीत है।
मोहानी ने उत्तर दिया कि उन्होंने यह नहीं कहा था कि हमें जाकर यूएसएसआर में विलय कर लेना चाहिए या आपको वही संविधान अपनाना चाहिए; लेकिन मैं जो कहना चाहता हूं वह यह है कि हमें अपना संविधान सोवियत रूस की तर्ज पर बनाना चाहिए। यह एक विशेष पैटर्न है और रिपब्लिकन पैटर्न भी है।
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भगवान के नाम से संविधान की शुरुआत का प्रस्ताव हो गया था खारिज
संविधान सभा में कई लोग ऐसे थे, जो चाहते थे कि प्रस्तावना की शुरुआत ईश्वर के नाम पर हो। राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा को सूचित किया कि कई सदस्यों ने कई संशोधन पेश करने के लिए नोटिस दिए हैं, एचवी कामथ ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें प्रस्तावना की शुरुआत इस प्रकार की गई: “ईश्वर के नाम पर, हम भारत के लोग…”
इस प्रस्ताव पर थिरुमाला राव ने तर्क दिया कि “भारत भगवान को चाहता है या नहीं, यह 300 लोगों के सदन के वोट के अधीन नहीं होना चाहिए। हमने यह स्वीकार कर लिया है कि शपथ में ईश्वर होना चाहिए, लेकिन जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते उनका क्या।” उन्होंने कामथ को अपना संशोधन वापस लेने का सुझाव दिया।
इसके बावजूद कई लोगों ने कामथ के प्रस्ताव का समर्थन किया। हालांकि प्रसाद और अंबेडकर दोनों ने कामथ को समझाने का प्रयास किया, दलील दी। लेकिन कामथ ने दोनों की दलीलों को खारिज करते हुए वोटिंग की मांग के साथ अपना प्रस्ताव रखा। मतदान हुआ और प्रस्ताव 41-68 से खारिज हो गया। कामथ की प्रतिक्रिया थी: “सर, यह हमारे इतिहास में एक काला दिन है। भगवान भारत को बचाए।”

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