Money Laundering Cases: सोरेन ने ई डी अधिकारियों को बुलाया रांची हुई पूछताछ तो , क्या केजरीवाल समन हमेशा ठुकराते रह सकते हैं?
दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी के साथ भोपाल से राधावल्लभ शारदा द्वारा संपादित रपट
नई दिल्ली: भ्रष्टाचार से कमाई के पैसे की हेरा-फेरी के आरोप झेल रहे नेता प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के बुलावे पर सवालों का सामना करने से कन्नी काट रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईडी के एक बाद एक कुल चार समन को नजरअंदाज कर चुके हैं। वो कहते हैं कि ईडी उन्हें बुलाने के क्रम में कानून का पालन नहीं कर रही है और उन्हें ईडी की तरफ से आ रहा बुलावा गैर-कानूनी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कई समन ठुकराने के बाद ईडी को ही आने का न्योता दिया। ईडी के अधिकारियों ने रांची में हेमंत सोरेन के आधिकारिक आवास पर ही उनसे पूछताछ की। तो सवाल है कि क्या अरविंद केजरीवाल या कोई और ईडी की पूछताछ से हमेशा के लिए बच सकते हैं? आखिर कानून ने ईडी को क्या अधिकार दिए है ।
धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 50(2) ईडी के निदेशक या जांच अधिकारी को अधिकार देता है कि वो मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी को तलब कर सकें। ध्यान देने की बात है कि ईडी के अधिकारी उन लोगों को भी तलब कर सकता है जिनकी उपस्थिति किसी केस की जांच या कानूनी-कार्यवाही के दौरान साक्ष्य प्रदान करने या रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के लिए जरूरी मानी जाती है।
पीएमएलए की सेकशन 50(3) में कहा गया है कि सभी तलब किए गए व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत प्रतिनिधियों के माध्यम से उपस्थित होना अनिवार्य है। उन्हें सच्चे बयान देने और अनुरोध किए गए दस्तावेज मुहैया कराना भी जरूरी होता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पीएमएलए के तहत प्रत्येक कार्यवाही को न्यायिक माना जाता है, जिसका अर्थ है कि दिए गए बयानों को अदालत के सामने शपथ माना जाता है।
एक बार तलब किए जाने के बाद व्यक्तियों के पास एजेंसी का निर्देश का पालन करने, बयान दर्ज करने और उनके पास मौजूद किसी भी प्रासंगिक दस्तावेज जमा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। समन के बाद उपस्थित होने में विफलता, चाहे वह एक बार हो या बार-बार, जांच में सहयोग नहीं करने और सच्चाई का सामना करने से बचने के प्रयासों के रूप में देखा जाता है। हालांकि यह अपने आप में गिरफ्तारी का कारण नहीं बन सकता है, लेकिन गिरफ्तारी की एक वजह जरूर बन सकता है। यदि ईडी ने किसी को व्यक्तिगत रूप से तलब किया है तो उसके पास किसी प्रतिनिधि को भेजने का विकल्प नहीं होता है, उसे हर हाल में खुद ही पेश होना होता है।
कुछ मामलों में ईडी बिना किसी पूर्व समन के किसी संदिग्ध को गिरफ्तार कर सकता है। ऐसा करने पर ईडी को रिमांड के दौरान अदालत में यह साबित करना होता है कि सबूतों से छेड़छाड़ या प्रमुख गवाहों को डराने से रोकने के लिए गिरफ्तारी जरूरी है। इसका एक उदाहरण फरवरी 2022 में मिला जब महाराष्ट्र के एक कैबिनेट मंत्री को मुंबई के ईडी ऑफिस में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें उनके खिलाफ किसी भी लंबित समन के बिना पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था।
हाल के अदालती फैसलों ने ईडी की कानूनी शक्तियों की पुष्टि की है, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया है कि केवल सम्मन का पालन न करने से गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। गिरफ्तारी की शक्ति को पीएमएलए की धारा 19(1) के तहत अलग से निपटाया जाता है, जिसके लिए ईडी डायरेक्टर को उनके पास मौजूद सबूतों के आधार पर गिरफ्तारी के लिए लिखित औचित्य प्रदान करने की आवश्यकता होती है। इन अदालती आदेशों ने स्पष्ट किया है कि ईडी गिरफ्तार कर सकती है, इस बहाने से उसके समन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अदालती आदेशों में साफ कहा गया है कि अगर दस्तावेज सौंपने और शपथ के तहत बयान दर्ज करवाने की खास दरकार हो तो ईडी के समन को बिल्कुल ठुकराया नहीं जा सकता है।