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Law क्या 1995 में पारित हुए अधिनियम के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर कर सकता है कब्जा? क्या कहता है कानून

क्या 1995 में पारित हुए अधिनियम के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर कर सकता है कब्जा? क्या कहता है कानून

इन दिनों वक्फ बोर्ड कानून खासा चर्चाओं में है. देश के तीसरे सबसे बड़े जमींदार पर आरोप लग रहे हैं कि इस कानून के चलते वक्फ बोर्ड देश के लोगों की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा कर रहा है.
क्या 1995 में पारित हुए अधिनियम के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर कर सकता है कब्जा? क्या कहता है कानून

वक्फ बोर्ड की स्थापना मुगल काल के दौरान मानी जाती है
बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह ने हाल ही में वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 को खत्म करने के लिए एक निजी विधेयक लोकसभा में पेश किया है. हरनाथ सिंह का कहना है कि इस अधिनियम में असमानता फैली हुई है. साथ ही उन्होंने कहा है कि इसकी आड़ में बड़े स्तर पर धर्मांतरण का खेल चल रहा है.
भारत में सशस्त्र बल और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड तीसरा सबसे बड़ा जमींदार है. वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के डेटा के अनुसार देश में वक्फ बोर्ड के पास फिलहाल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ से ज्यादा है.
1954 में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने वक्फ अधिनियम पारित किया था, जिसके बाद वक्फ का केंद्रीकरण हुआ. अधिनियम के तहत, सरकार ने 1964 में एक केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की थी. ये कानून तब से ही चर्चाओं में है. हालांकि इस अधिनियम को मंजूरी 1955 में ही मिल गई थी. तो चलिए आज हम इस स्टोरी में जानेंगे कि वक्फ बोर्ड कानून 1995 में कब पास हुआ और वक्फ बोर्ड का इतिहास क्या है.
हरनाथ सिंह ने वक्फ बोर्ड पर लगाए आरोप
लोकसभा सांसद हरनाथ सिंह ने वक्फ बोर्ड पर आरोप लगाते हुए कहा है कि इस वक्फ बोर्ड की ताकत ये है कि इस बोर्ड के मेंबर, सर्वेयर या कार्याधिकारी किसी भी संपत्ति को बोल देंगे कि ये संपत्ति उनकी है तो बोर्ड को ये साबित करने की जरूरत नहीं कि उसकी वो संपत्ति है या नहीं.
उन्होंने आगे कहा, बल्कि जिस शख्स के पास वो मौजूद है वो सिद्ध करे कि ये संपत्ति उसकी है. ये सब होगा उस आदमी के आदेश पर जिस सर्वेयर या कार्याधिकारी ने ये आदेश दिया है. इस एक्ट में ये प्रावधान है कि वक्फ बोर्ड के इस फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती चाहे उच्च न्यायालय हो या उच्चतम न्यायालय.
क्या है वक्फ बोर्ड कानून?
भारत में वक्फ बोर्ड देश के तीसरे सबसे बड़े जमींदार के रूप में उभरकर सामने आया है. वक्फ की बात करें तो वो इस्लामिक कानून में एक प्रकार का इस्लामिक धर्मार्थ बंदोबस्त है. जहां एक संपत्ति का स्वामी अल्लाह को बना दिया जाता है और संपत्ति को स्थायी रूप से धार्मिक के कार्यों के लिए समर्पित किया जाता है.
आसान भाषा में समझें तो जब कोई मुस्लिम अपनी संपत्ति दान कर देता है तो उसकी देखरेख का जिम्मा वक्फ बोर्ड के पास ही होता है. वक्फ बोर्ड के पास दान दी गई किसी संपत्ति पर कब्जा करने या वो संपत्ति किसी ओर को देने का अधिकार होता है. इस बोर्ड का काम देखने वालों को मुतावली कहा जाता है.
इसके अलावा वक्फ बोर्ड उन संपत्तियों की रक्षा करता है और ये निश्चित करता है कि उसके पास जो संपत्तियां है उनसे जो आय हो रही है उनका क्या इस्तेमाल किया जा रहा है या उसका क्या उपयोग किया जाना है. इस संपत्ति से गरीब और जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धर्म के कार्यों के लिए पैसे देने संबंधी चीजें शामिल हैं.
वहीं किसी संपत्ति को लंबे समय से धर्म के कार्य के लिए इस्तेमाल में लिया जा रहा हो तो वो भी वक्फ बोर्ड के पास जाती है. इसमें ये नियम भी शामिल है कि यदि किसी संपत्ति को एक बार वक्फ बोर्ड को दे दिया जाता है तो उसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता.
भारत में कैसे हुई वक्फ की शुरुआत?
विश्व में वक्फ की शुरुआत इस्लामिक काल से मानी जाती है. जिसे पैगंबर मुहम्मद ने स्थापित किया था. इस्लामी स्वर्ण युग के दौरान, इस्लामी बच्चों को छात्रवृत्ति और शिक्षा के विकास में वक्फ संस्थानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दुनिया की कई पुरानी युनिवर्सिटीज जैसे मिस्त्र में अल अजहर और मोरक्को में अल क्वारौयिन को वक्फ के संस्थानों के रूप में स्थापित किया गया था.
वहीं भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत की शुरुआत के समय मानी जाती है. बताया जाता है कि सुल्तान मुइजुद्दीन सैम घोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव वक्फ बोर्ड को दिए थे. हालांकि ब्रिटिश राज को दौरान वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया गया था. ब्रिटिश राज के चार न्यायाधीशों ने वक्फ को ‘सबसे खराब प्रकार की शाश्वतता’ यानी अमर होने की अवस्था बताया था. हालांकि न्यायाधीशों के इस फैसले को स्वीकार नहीं किया गया था और मुस्लिम वक्फ मान्यकरण अधिनियम 1913 ने संस्था को खत्म होने से बचाया था.
बाद में 1954 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम पारित किया गया था जिसके बाद वक्फ का केंद्रीकरण किया गया था. वहीं इस अधिनियम के तहत सरकार द्वारा 1964 में एक केंद्रीय वक्फ केंद्रीय परिषद की स्थापना की गई थी. इसके बाद 1995 में हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्डों के गठन की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन किया गया था. हालांकि अब बिहार जैसे कुछ राज्यों में शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड की स्थापना की गई है.
विवादों में क्यों?
एबीपी से हुई बातचीत में हरनाथ यादव ने बताया कि इस वक्फ बोर्ड की ताकत ये है कि इस बोर्ड के मेंबर, सर्वेयर या कार्याधिकारी किसी भी संपत्ति को बोल देंगे कि ये संपत्ति उनकी है तो बोर्ड को ये साबित करने की जरूरत नहीं कि उसकी वो संपत्ति है या नहीं, बल्कि जिस शख्स के पास वो मौजूद है वो सिद्ध करे कि ये संपत्ति उसकी है.
उन्होंने आगे कहा, ये सब होगा उस आदमी के आदेश पर जिस सर्वेयर या कार्याधिकारी ने ये आदेश दिया है. इस एक्ट में ये भी प्रावधान है कि वक्फ बोर्ड के इस फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती चाहे उच्च न्यायालय हो या उच्चतम न्यायालय.
इसके अलावा 2022 सितंबर में आप विधायक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अमानतुल्ला खान ने भी वक्फ फंड की हेराफेरी और बोर्ड में अनियमितता के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वहीं इस साल फरवरी में केंद्र सरकार द्वारा क्फ बोर्ड की 123 संपत्तियों को भी जब्त किया गया था.
हरनाथ सिंह भी ये दावा करते हैं कि उनके पास ऐसे कई केस आए हैं जिसमें वक्फ ने लोगों की संपत्तियों पर कब्जा कर लिया है. दो घटनाओं का जिक्र करते हुए वो बताते हैं कि तमिलनाडु प्रदेश के त्रिचि जिले के गांव में डेढ़ हजार आबादी है, उसमें कुल और मात्र 7-8 घर मुस्लिमो के हैं और पड़ोस में ही एक शंकर जी का मंदिर है जो डेढ़ हजार साल पुराना.
उन्होंने आगे कहा, वक्फ बोर्ड ने उस गांव की पूरी संपत्ति पर अपना दावा ठोक दिया है और सबको खाली करने का नोटिस कलेक्टर के यहां से आ गया है. कागजात से भी संपत्ति खारिज हो गई है. इसमें गांव की अधिकतर आबादी गरीब है. बाद में जब लोग थक हार गए तो उन्हें एक ऑप्शन देते हुए मुस्लिम धर्म स्वीकार करने का सुझाव दिया गया कि अगर वो ऐसा कर लेंगे तब उनकी जमीन बच जायेगी.
दूसरा उदाहरण देते हुए हरनाथ बताते हैं कि ऐसा ही एक वाक्या महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का है, जहां एक बस्ती में 250 करीब अनुसूचित वर्ग के लोग हैं उनके पास एक नोटिस उनकी जमीन को खाली करने का आया कि वो जहां रह रहे हैं वो वक्फ बोर्ड की है. वो दर-दर भटके तो उनको भी इस्लाम धर्म अपनाने का ऑफर किया गया. उन्होंने कहा कि ये विषय जमीन हड़पने के साथ-साथ बड़े स्केल पर धर्मांतरण का भी है.
किसी भी जमीन पर हो सकता है वक्फ बोर्ड का कब्जा?
अब सवाल ये उठता है कि क्या किसी भी जमीन पर वक्फ बोर्ड अपना कब्जा घोषित कर सकता है? तो बता दें ऐसा नहीं है. वक्फ एक्ट 1995 की धारा 40 के मुताबिक, यदि वक्फ के सामने ऐसा कोई कारण होता है कि संबंधित संपत्ति पर उनका हक है तो बोर्ड द्वारा उस संपत्ति पर कब्जा जमाने वाले को नोटिस भेज दिया जाता है.
वहीं एक्ट की धारा 3 के अनुसार, उसी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित किया जा सकता है जो मुस्लिम लॉ की ओर से मान्यता प्राप्त किसी धार्मिक या चैरिटेबल कार्य के लिए दान दी जाती है.

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