Revised Criminal Law Bills: नया कानून लागू होने से आपराधिक मुकदमा वापस लेने के सरकार के एकतरफा अधिकार पर लगेगा अंकुश
भोपाल से राधावल्लभ शारदा के साथ वकील यावर खान की टिप्पणी के साथ,2003 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, मंत्री राजा पटेरिया एवं आर के डी एफ कालेज के सुनील कपूर पर मुकदमा दर्ज कराया गया था 2019मे कांग्रेस सरकार के आने के बाद जिस जांच एजेंसी ने जांच की थी उसी जांच एजेंसी ने प्रकरण वापिस ले लिया, क्रिमिनल केस होने के कारण सुप्रीमकोर्ट में प्रकरण दर्ज किया है। इस नए कानून से राजनेताओं पर दवाब रहेगा। मध्यप्रदेश में एक नया कानून बन गया है कि राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में भ्रष्टाचार की शिकायत मय दस्तावेज के की जाती है तब संबंधित विभाग से अनुमति मांगी जाती है। इस आदेश से प्रकरण प्रभावित होता है, इस प्रक्रिया को भी समाप्त करना चाहिए ।
अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह प्रस्तावित नया कानून भारतीय नागरिक संहिता लागू होने को तैयार है। यह संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधिवत कानून की शक्ल लेकर लागू हो जाएगा। इस नये प्रस्तावित कानून में कई खूबियां हैं और इसे विशेषकर अपराध के पीड़ित को ध्यान में रख कर बनाया गया है।
नया कानून लागू होने से आपराधिक मुकदमा वापस लेने के सरकार के एकतरफा अधिकार पर लगेगा अंकुश
अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह प्रस्तावित नया कानून भारतीय नागरिक संहिता लागू होने को तैयार है। (फोटो- एएनआई)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह प्रस्तावित नया कानून भारतीय नागरिक संहिता लागू होने को तैयार है। यह संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधिवत कानून की शक्ल लेकर लागू हो जाएगा।
नये प्रस्तावित कानून में कई खूबियां
इस नये प्रस्तावित कानून में कई खूबियां हैं और इसे विशेषकर अपराध के पीड़ित को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इस नये कानून में आपराधिक मुकदमा वापस लेने के सरकार के एकतरफा अधिकार पर अंकुश लगाया गया। नया कानून कहता है कि मुकदमा वापस लेने की अर्जी मंजूर करने से पहले पीड़ित को पक्ष रखने और सुनवाई का मौका दिया जाएगा, जबकि अभी लागू मौजूदा कानून अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में ऐसा प्रावधान नहीं है।
मुकदमा वापस लेने का एकतरफा अधिकार नहीं
इससे साफ है कि नये कानून में राज्य सरकार का मुकदमा वापस लेने का एकतरफा अधिकार नहीं रहेगा इसमें पीड़ित की मर्जी चलेगी। इतना ही नहीं इससे राजनीति से प्रेरित होकर मुकदमे वापस लेने की प्रवृत्ति पर भी रोक लगेगी। कई बार सरकारें सत्ता में आने के बाद इस तरह के कदम उठाती हैं और 2013 का उत्तर प्रदेश में सपा सरकार का बम विस्फोट के आरोपित आतंकियों के मुकदमे वापस लेने के प्रयास का मामला उल्लेखनीय है। हालांकि कोर्ट ने इजाजत नहीं दी थी
अपराध किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि राज्य के खिलाफ हुआ माना जाता है इसलिए किसी भी अपराध में मुकदमा सरकार लड़ती है केस की अभियोजक सरकार होती है। ज्यादातर मामलों में राज्य सरकार अभियोजक होती है क्योंकि कानून व्यवस्था, पुलिस, राज्य का विषय है कुछ मामलों में जिसमें केंद्रीय एजेंसियों ने जांच की होती है तो अभियोजक केंद्रीय एजेंसी जैसे सीबीआइ आदि होती हैं।
कोर्ट की इजाजत से केस लिया जा सकता वापस
कानून में प्रावधान है कि पब्लिक प्रासीक्यूटर जिसे आम भाषा में सरकारी वकील या लोक अभियोजक कहा जाता है, केस में फैसला आने से पहले कभी भी मुकदमा वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल कर सकता है। उसकी कुछ शर्तें रखी गई हैं और कोर्ट की इजाजत से केस वापस ले सकता है।
अभी लागू सीआरपीसी की धारा 321 में लोक अभियोजक के मुकदमा वापस लेने का प्रावधान है और नये प्रस्तावित कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 360 में भी ऐसा ही प्रावधान है। बस नये कानून में एक अंतर है कि इसमें पीड़ित को विरोध करने और अपनी बात रखने का अधिकार दिया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 360 अन्य शर्तों के साथ एक शर्त यह भी लगाती है कि कोई भी अदालत पीड़ित को पक्ष रखने का मौका दिये बगैर मुकदमा वापस लेने की अर्जी स्वीकार नहीं करेगी।
नये कानून में जोड़ी गई इस पंक्ति के बहुत मायने हैं। इससे पीड़ित का मुकदमा वापस लेने का विरोध करने का अधिकार सृजित होता है। कानूनन उसकी बात सुनी जाना अनिवार्य किया गया है। अभी तक कानून में पीड़ित के ऐसे किसी अधिकार की बात नहीं थी हालांकि, पीड़ित की ओर से विरोध की अर्जी दाखिल किये जाने पर अदालत उसकी बात सुनती थी। वैसे सरकार के आपराधिक मकुदमे वापस लेने के मनमाने रवैये पर अदालतों ने कई बार टिप्पणियां की हैं।
नए विधेयक में कई तरह के विशेष प्रावधान
सुप्रीम कोर्ट ने तो 2021 में केरल राज्य बनाम के. अजीत के मामले में तो लोक अभियोजक की ओर से सीआरपीसी की धारा 321 में दाखिल की गई मुकदमा वापस लेने की अर्जी पर विचार करने के संबंध में विस्तृत दिशा निर्देश भी जारी किये थे। और इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान और पूर्व सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मकुदमों की निगरानी के मामले में 10 अगस्त 2021 को आदेश दिया था कि हाई कोर्ट की इजाजत के बगैर किसी भी वर्तमान और पूर्व सांसद या विधायक के खिलाफ मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकता।
साथ ही कहा था कि ऐसी अर्जी पर विचार करते समय केरल मामले में दिये गये दिशा निर्देशों का पालन किया जाएगा। उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस धारा में मिली शक्ति का इस्तेमाल व्यापक जनहित में अच्छे इरादे से किया जाना चाहिए। कानून में तय व्यवस्था के मुताबिक लोक अभियोजक मुकदमा वापस लेने की अर्जी संबंधित अदालत में दाखिल करता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माननीयों के मामले में यह अधिकार हाई कोर्ट को दिया है।
माननीयों के मामले में यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमित्र वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया के सुझाव पर जारी किया था। हंसारिया ने ऐसा आदेश जारी करने का अनुरोध करते हुए कहा था कि विभिन्न राज्य सरकारें सीआरपीसी की धारा 321 में मुकदमा वापस लेने की शक्ति का इस्तेमाल करके सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमे वापस ले रही हैं।