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CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि जाति व्यवस्था एक जटिल मसला

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि जाति व्यवस्था एक जटिल मसला है ।

सीजेआई चंद्रचूड़, 36वें लॉ एशिया सम्मेलन में बोल रहे थे.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जाति व्यवस्था के चलते न सिर्फ इतिहास में असमानताएं दर्ज हैं, बल्कि आज भी जाति व्यवस्था एक जटिल मसला है. कानून में अंतर्निहित जटिलताएं समाज में इस तरह के विभाजन को कायम रखती हैं. सीजेआई ने कहा कि आज भी जाति का प्रभाव बना हुआ है और विभिन्न जातियों को आर्थिक अवसरों के रूप में इसका लाभ मिल रहा है.
आरक्षण पर क्या बोले?
CJI चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि आरक्षण जैसी व्यवस्था जाति आधारित असमानताओं को दूर करने के लिए आशा की किरण की तरह है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ बेंगलुरु में 36वें लॉ एशिया सम्मेलन में ‘*पहचान, व्यक्ति और राज्य: स्वतंत्रता के नए रास्ते’ विषय पर अपनी बात रख रहे थे* अपने संबोधन में चीफ जस्टिस ने इस बात पर भी चर्चा की कि कैसे अधिवक्ताओं को स्वतंत्रता, पहचान और इसे सीमित करने में राज्य की भूमिका के अंतर्विरोध का सामना करना पड़ता है.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि स्वतंत्रता की ऐतिहासिक समझ की सीमाओं को समझना महत्वपूर्ण है. सीजेआई ने कहा कि कोई भी ज्ञान तटस्थ या वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकता. उन्होंने कहा, “कोई भी ज्ञान वैचारिक रूप से तटस्थ नहीं है… हम स्वतंत्रता के अपने बदलते विचार को देखते हैं”.
‘जो धर्म और नस्ल की वजह से हाशिए पर हैं, उन्हें हमेशा…’ : CJI चंद्रचूड़
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे समाज में अंतर्निहित भेदभाव को दूर करने के लिए, हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि लोगों को अलग-अलग पहचान में न बांधा जाए. सीजेआई ने भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली कठिनाइयों पर भी प्रकाश डाला. सीजेआई ने कहा कि दिव्यांग लोगों को पात्रता के लिए प्रमाण पत्र प्राप्त करने को मजबूर किया जाता है. इससे राज्य द्वारा मानक तैयार करने में समस्या पैदा हो गई है. सीजेआई ने आगे कहा, केवल सिस्टम की बाधाओं को दूर करने से ही तमाम मुश्किलें हल हो सकती हैं.
अपना उदाहरण भी दियाCJI ने उदाहरण देते हुए कहा कि “मेरे जैसे लोग जो चश्मा पहनते हैं, उन्हें दिव्यांग नहीं माना जाता है, क्योंकि चश्मा एक ऐसी चीज है जो हर जगह व्यापक रूप से उपलब्ध है. ऐसे लोगों के लिए (चश्मा पहनने वालों के लिए) अवसरों की कोई कमी नहीं है. इसलिये आत्म-पहचान का भेद ऐसा नहीं होना चाहिए, जो भेदभाव को बढ़ावा दे”.

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