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C M मोहन यादव की छवि को धूमिल करने के साथ DGP के आदेश भी रद्दी की टोकरी में , नौकरशाही हावी पत्रकारों के लिए बने गृह विभाग के आदेश न मानने पर आमादा ,

C M मोहन यादव की छवि को धूमिल करने के साथ DGP के आदेश भी रद्दी की टोकरी में , नौकरशाही हावी। पत्रकारों के लिए बने गृह विभाग के आदेश न मानने पर आमादा ,
भोपाल, लगता है कि मध्यप्रदेश में नौकरशाही हावी है, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, और पुलिस महानिदेशक के आदेश भी रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं इतना ही नहीं देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यालय से पत्रों को भी दूध से मक्खी को निकालने की तरह नष्ट कर देते हैं।
मध्यप्रदेश के गृह विभाग, पुलिस, के 6 जनवरी 2010 के आदेश में स्पष्ट लिखा है कि किसी पत्रकार के खिलाफ यदि कोई व्यक्ति शिकायत कराता है तो 154 में प्रकरण दर्ज कर जांच करना होगा, जांच भी पुलिस अधीक्षक अथवा डी आई जी स्तर के अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए, यदि दुर्भावना से एफआईआर दर्ज की जाती पाई जाती है तो फिर एफआईआर दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी, और यदि प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया है तो फिर न्यायालय से वापिस लेना चाहिए।
गृह विभाग के आदेश में यह भी लिखा है कि प्रत्येक 3 माह में पत्रकारों पर दर्ज प्रकरणों की समीक्षा होनी चाहिए,
इस आदेश की अवहेलना तो हो ही रही है और बहुत से पुलिस अधीक्षक एवं अन्य अधिकारियों एवं पुलिस कर्मियों को जानकारी भी नहीं है।
एम पी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष के द्वारा उनके पास आई शिकायतों को पुलिस महानिदेशक श्री सक्सेना को पत्र लिखकर सी आई डी के वरिष्ठ अधिकारियों से जांच करने का लिखा।
पुलिस महानिदेशक के आदेश पर भी कार्यवाही नहीं होना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है।
भोपाल की आरती परिहार, उमरिया से राजू गुप्ता, मंडला से दीप्ति कोर,इसी तरह और भी पत्रकारों के प्रकरण की जांच,इसी तरह भोपाल के एन पी अग्रवाल, के साथ विनोद श्रीवास्तव के खिलाफ लिखी एफआईआर पर पुलिस कमिश्नर भोपाल को पत्र दिया था,
जांच पड़ताल करने के बाद प्रकरण में क्या हुआ पुलिस विभाग के द्वारा जानकारी नहीं दी जाती है।
अंत में सूचना के अधिकार में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
लम्बे समय से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग की जा रही थी, विधानसभा चुनाव के पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए एक समिति गठित की गई थी उस समिति में वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव को रखा गया है। जानकारी के अनुसार समिति की एक बैठक हुई उसके बाद विधानसभा चुनाव आए और भाजपा की सरकार बनी उस सरकार में मुखिया मतलब मुख्यमंत्री के पद पर श्री मोहन यादव ने कार्यभार संभाला,श्री मोहन यादव के पास जन सम्पर्क विभाग भी है।
परन्तु दुर्भाग्यवश शायद किसी ने भी उन्हें नहीं बताया होगा कि पत्रकारों के लिए सुरक्षा कानून बनाने के लिए एक समिति बनाई गई है।
नौकरशाही हावी थी और है ऐसा मुझे लगता है अन्यथा पत्रकारों से संबंधित सुरक्षा कानून एवं मीडिया सेंटर सहित पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के द्वारा जो निर्णय लिए गए थे उनका क्रियान्वयन हो जाता।
पुलिस विभाग ही नहीं अन्य विभाग के अधिकारियों को समय नहीं है कि वो वाट्स अप या एसएमएस संदेश पढ़ कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करें।
यदि अफसरशाही इसी तरह काम करती है तो मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव के लिए दुखदाई होता नजर आ रहा है।

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