Breaking News

‘आप’ ऐसे ही थे, बस मौके की ताक में मुखौटा ओढ़े रहे 

‘आप’ ऐसे ही थे, बस मौके की ताक में मुखौटा ओढ़े रहे

ये क्या! सब फुस्स हो गया! नकली इरादों वाली रबर की हवा तो खैर तब ही निकलने लगी थी, जब लगा कि ‘आप’ गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। इधर हथकड़ी लगी भी नहीं और उधर सारी हेकड़ी धच्च से बाहर निकल गई। वो भी ‘ आक थू’ से भी अधिक, उलटी करने वाले विकृत स्वरूप में। उलटी करने को वमन भी कहते हैं, लेकिन यहां तो मामला ‘ विष-वमन’ वाला कर दिया गया है। ‘आप’ ने किसी समय लोकपाल की मांग के लिए स्वयं को देश की कानून-व्यवस्था के प्रति सच्चे सिपाही जैसा प्रदर्शित किया था और आज उसी कानून का शिकंजा कसे जाने के साथ ‘आप’ इसी सबके लिए विष-वास से भर गए हैं। सच के जो समर्थक कभी अन्ना के समय सड़क पर सत्याग्रही अंदाज में उतरे थे, आज उनमें से अधिकांश किसी दुमछल्ले की शक्ल में हुल्लड़ गैंग के जैसा आचरण कर रहे हैं। निश्चित ही स्थिति कुछ जटिल है। जनता-जनार्दन के टैक्स के पैसे का करोड़ों रुपया निर्दयता के साथ अपने सरकारी आशियाने पर फूंक कर ‘आप’ने अपने सुख-चैन का बंदोबस्त किया। लेकिन अब तो सलाखों के पीछे जाने वाली बात हो गई है। लिहाजा फड़फड़ाना और उसके लिए प्रायोजित किस्म के विरोध का सहारा लेना तो जरूरी हो ही जाता है। एक फड़फड़ाहट तो आज ‘आप’ को निश्चित ही हो रही होगी कि क्यों नहीं अपनी मुफ्तखोरी वाली घटिया सियासत का विस्तार ‘आप’ने जेल में बंद अपराधियों के लिए भी किया। यदि ऐसा कर लेते तो आज आप जेल जाने के नाम से यूं दुम कटी छिपकली की तरह बिलबिला नहीं रहे होते।

वाह! एक फिल्म याद आ गई। शीर्षक था, ‘चोरों की बारात।’ फिल्म ‘आप’ के चाल, चरित्र और चेहरे की तरह ही सी ग्रेड की थी, लेकिन शीर्षक एकदम मौजू हैं। क्योंकि ‘आप’ के समर्थन में ‘ढोरों की बारात’ चल पड़ी है। ठीक वैसे ही जैसे किसी समय मुंबईं आतंकी हमले के एक दोषी को बचाने के लिए आधी रात को कई निशाचर सक्रिय हो गए थे। तब मामला सबसे बड़ी अदालत की दहलीज तक पहुंचा था और आज इसका विस्तार फिलहाल चुनाव आयोग तक तो हो ही गया है। बात फिल्म की है और उदाहरण भी उससे ही जुड़ा है। एकदम सटीक। एक साहब को पता चला कि उनकी बीवी किसी गैर (शादीशुदा) मर्द के साथ फिल्म देखने एक थिएटर में गई है। पत्नी को सबक सिखाने के लिए उन महाशय ने टॉकीज के मैनेजर से कहा कि वह इस जोड़े को रंगे हाथ पकड़वाने में मदद करे। मैनेजर ने थिएटर में घोषणा कराई कि यहां जो आदमी और औरत अपने जीवन साथी को धोखा देकर आए हुए हैं, वह बाहर आ जाएं। उनके घर वाले आ चुके हैं। यह घोषणा होनी थी कि आधे से ज्यादा जोड़े थियेटर से बदहवासी मे बाहर निकल कर भागे। ऐसा ही इस मामले में भी हो रहा दीखता है। आज चुनाव आयोग पहुंचे जिन चेहरों को आप गुस्से से लाल-पीला समझ रहे हैं, उनका सच समझिए। वो दरअसल डर से पीले पड़े हुए हैं। यह सोचकर कि, ‘करतूतों के मामले में हमारा ये सहोदर तो बमुश्किल एक दशक में ही जेल के मुहाने पर पहुंच गया, यदि ऐसा ही चला तो दशकों के हमारे ऐसे कारनामों के चलते हमारा अंजाम क्या होगा? ‘ ऐसे लोग जब इस तरह के मामले में नैतिकता की दुहाई देते हैं, तो एक कामना हृदय को मथने लगती है। वह कि परमेश्वर श्रीलाल शुक्ल जी को एक जन्म और दे दें। ताकि वह अपनी अमर कृति ‘राग दरबारी’ में आज की शिक्षा पद्धति की बजाय इस राजनीतिक नैतिकता को सड़क पर पड़ी उस कुतिया की तरह लिख पाते, जिसे हर कोई रास्ता चलता लात मार देता है। खैर, अपने चूर-चूर हुए भ्रम के बाद आज यह तो नहीं कहूंगा कि ‘आप’तो ऐसे न थे। यहीं कहूंगा कि ‘आप’ ऐसे ही थे, बस मौके की ताक में थे।

About Mahadand News

Check Also

Journalist*असेम्बली ऑफ़ एमपी जर्नलिस्ट्स के प्रांतीय अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल को लिखा पत्र मांग की पत्रकारों को वेतन, नियुक्ति पत्र मिले

Journalist*असेम्बली ऑफ़ एमपी जर्नलिस्ट्स के प्रांतीय अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल को …