Kashi-Mathura में मंदिर तोड़ मस्जिदें बनाई गईं…सर्वे और कोर्ट-कचहरी की क्या जरूरत इतिहासकार इरफान हबीब कहते हैं
लखनऊ से प्रेमशंकर अवस्थी के साथ भोपाल से राधावल्लभ शारदा द्वारा संपादित रपट
मेरठ -, प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब का कहना है कि वाराणसी-मथुरा में मंदिर थे, इन्हें तोड़ा गया यह बिल्कुल सही है। इसका जिक्र इतिहास की कई किताबों में किया गया है। यह साबित करने के लिए किसी सर्वे, कोर्ट-कचहरी की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन 1991 के उपासना स्थल कानून के तहत इनका मौजूदा स्वरूप संरक्षित है। इसके मुताबिक 1947 की स्थिति बरकरार रखनी होगी। अगर कोई तब्दीली करनी है तो कानून बदलना होगा। तीन सौ, चार सौ साल बाद इन्हें दुरुस्त करने का औचित्य क्या है। इरफान हबीब उदाहरण देते हैं कि भारत में हजारों बौद्ध मठों को तोड़ कर मंदिर बनाए गए, क्या आप उन्हें भी तोड़ेंगे। गया का महाबोधि मंदिर इसी का उदाहरण है। वहां शैव मत के लोगों ने कब्जा कर लिया। हालांकि अब वहां हिंदू और बौद्ध दोनों ही पूजा करते हैं।
इरफान हबीब कहते हैं कि अब प्रचारित किया जा रहा है कि भारत लोकतंत्र की जननी है। यह ऐतिहासिक रूप से गलत है। जिस वैशाली का उदाहरण दिया जाता है, वह महाजनपद था। एक देश के रूप में भारत की निश्चित सीमा नहीं थी। हर छोटा-मोटा राजा कुछ भूभाग जीतकर खुद को भारत का सम्राट बताने लगता था। हिंदुस्तान शब्द तो अरबों की देन है।
राजनीतिक रूप से वामपंथी विचारधारा से जुड़े रहे प्रो. इरफान हबीब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर टिप्पणियों से आहत हैं। कहते हैं कि जब नेहरू को सत्ता मिली तो देश के क्या हालात थे। उन्होंने कैसे-कैसे देश का संचालन शुरू किया और जरूरतों को पूरा करना शुरू किया। मगर अब लोग उन्हें भला बुरा कहते हैं, जो गलत है
भाजपा समेत दक्षिण पंथी पार्टियां और संगठन सबसे ज्यादा औरंगजेब पर हमलावर क्यों रहते हैं, इसके जवाब में इरफान कहते हैं कि मुगल बादशाहों में औरंगजेब ही था, जिसने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। दक्षिण पंथी जमातों का उनके खिलाफ सबसे ज्यादा हमलावर होना स्वाभाविक ही है, लेकिन अब अति हो गई है। मंदिरों को तोड़ने के आदेश के पीछे औरंगजेब की क्या मंशा रही होगी, इस सवाल के जवाब में इरफान हबीब कन्नी काट गए। उनका कहना था कि इसका जवाब तो मजहबी लोग ही दे सकते हैं। महमूद गजनवी और तैमूरलंग ने भी मंदिरों को तोड़ा लेकिन वे शासक नहीं,
इरफान हबीब कहते हैं कि लगभग सभी मुगल बादशाहों ने मंदिरों को संरक्षण दिया। अकबर ने मुहम्मद बिन कासिम (814) ईस्वी से गैर मुस्लिमों से लिया जाने वाला जजिया कर खत्म कर दिया था। अन्य किसी मुगल बादशाह, यहां तक कि औरंगजेब के भी जजिया कर लेने का सबूत नहीं है। ब्राह्मणों से जजिया नहीं वसूला जाता था। शाहजहां तो एक कदम आगे बढ़कर वृंदावन के एक मंदिर के बारे में कहता है कि यहां खुदा की पूजा होती है, इसे मदद दी जानी चाहिए। अकबर और जहांगीर ने मथुरा में मंदिरों को ग्रांट मुहैया कराईं। औरंगजेब के जमाने में भी उन्हें ये सब मिला। इसका जिक्र उन्होंने अपनी किताब-ब्रजभूमि इन मुगल टाइम्स में किया है