Abolish 1991 Place एक्ट हटा तो कैसे देश में हजारों मंदिरों के उद्धार का खुल जाएगा रास्ता
दिल्ली से वेदप्रकाश रस्तोगी के साथ भोपाल से राधावल्लभ शारदा द्वारा संपादित रपट
नई दिल्ली : बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पूजा स्थल कानून 1991 को तत्काल समाप्त करने की मांग उठाई। राज्यसभा में सोमवार को शून्यकाल के दौरान अपनी बात रखते हुए बीजेपी सांसद ने अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून संविधान के तहत प्रदान किए गए हिंदुओं, सिखों, जैनियों और बौद्धों के धार्मिक अधिकारों का अतिक्रमण करता है। दावा किया कि ये कानून देश में सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने आगे ये भी कहा कि पूजा स्थल अधिनियम पूरी तरह से अतार्किक और असंवैधानिक है।
बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए कहा कि यह कानून संविधान में प्रदत्त समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। ये कानून न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है। इस कानून से हिंदुओं, सिखों, जैनों और बोधों के धार्मिक अधिकार प्रभावित होते हैं। बीजेपी नेता की ये मांग वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मुकदमे को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई की पृष्ठभूमि में आई है।
वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा करने की अनुमति दी थी, जिसके बाद तहखाने में पूजा शुरू हो गई। हालांकि, ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति ने जिला कोर्ट के फैसले का विरोध कर दिया। कमिटी ने इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट रूख किया। इसमें पूजा स्थल कानून 1991 का हवाला दिया गया और वाराणसी के जिला जज के फैसले को चुनौती दी गई। अब बीजेपी सांसद ने इसी एक्ट का जिक्र करते हुए मामले को राज्यसभा में उठाया। बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने इस एक्ट को खत्म करने की मांग की है।
बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह की मांग ऐसे समय में आई जब वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मुकदमे से जुड़ी कानूनी लड़ाई चल रही। इसी की पृष्ठभूमि में बीजेपी नेता आवाज बुलंद की। इसमें हिंदू पक्षों ने दावा किया कि मौजूदा मस्जिदों का निर्माण हिंदू मंदिरों पर किया गया है। उनकी बहाली की मांग की गई है। बीजेपी सांसद ने प्रधानमंत्री मोदी की उस टिप्पणी की भी सराहना की जिसमें उन्होंने कहा था कि आजादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले लोग उपासना स्थलों का महत्व नहीं समझ सके। राजनीतिक कारणों से अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदा होने की प्रवृत्ति शुरू कर दी।
*क्या है पूजा स्थल एक्ट 1991*
उपासना या पूजा स्थल अधिनियम 1991 के मुताबिक, 15 अगस्त, 1947 के समय जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में होगा, उसके बाद वह वैसा ही रहेगा। उसकी प्रकृति या स्वभाव नहीं बदली जाएगी। साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में यह कानून पारित हुआ था। इसे स्पेशल प्रोविजंस के तहत बनाया गया था। इस एक्ट के तहत किसी भी धार्मिक स्थल का स्थिति बदलना गैरकानूनी है। यही नहीं इस कानून के अनुसार, दूसरे धर्म के कब्जे के सबूत पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। एक्ट के नियमों का उल्लंघन करने पर तीन साल जेल और जुर्माने का भी प्रावधान है।
पूजा स्थल कानून 1991 उस समय बना था जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था। राम मंदिर आंदोलन को देखते हुए देशभर के कई मंदिरों और मस्जिदों को लेकर विवाद सामने आने लगे थे। ऐसे में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार इस कानून को ले आई थी। हालांकि, राम मंदिर विवाद इससे अलग रखा गया। इसमें बताया कि ये मामला अंग्रेजों के समय से कोर्ट में था। यही वजह है कि राम मंदिर को लेकर फैसले में ये कानून आड़े नहीं आ सका।